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(विधाओं, विषयों व भाषाओं की सीमा से परे.. मानवता के संसार की अनमोल किताब -धरोहर- को हस्तांतरित करने की पहल। जीवन को नये अर्थ, नयी दिशा, नयी सोच देने वाली किताबों के लिए कृतज्ञता का एक भाव। साप्ताहिक पेशकश हर सोमवार आब-ओ-हवा पर 'शुक्रिया किताब'.. इस बार हर स्त्री (मनुष्य) के लिए एक 'मस्ट-हैव' किताब (A Room Of One's Own) का पाठ -संपादक)
आकांक्षा की कलम से....

हर उम्र की स्त्री के लिए यूनिवर्सिटी है यह किताब

            वर्जीनिया वूल्फ़ से ‘पहली मुलाक़ात’ ट्वेंटीज़ की उम्र में हुई थी। यह किताब ‘अ रूम ऑफ़ वन्’स ओन’ उन सब बातों की गूँज थी, जो भारतीय समाज में पल रही अनेक लड़कियों के ज़ेहन में कोलाहल मचाते होंगी।

इसके कई वाक्य आपको इतिहास, भावनाएँ, औरत-मर्द के लेखक होने, साहित्य और कमाल के साहित्यिक लेखन की कोई मास्टर क्लास लग सकते हैं। कभी तो ऐसे प्रैक्टिकल विश्लेषण कि आपके सामने 19वीं सदी का मिडिल-क्लास घर और उसकी औरतें वहाँ दिख जाएंगी और कहीं ऐसे वाक्य जैसे आपके इतने सालों के सवाल का जवाब किसी ने उस सदी में लिखकर इस किताब में रख दिया था।

पहली बार इसी किताब ने सिखाया कि अच्छा पढ़ना और लिखना किस स्तर का हो सकता है। समाजों को अलग देखना, उनसे कौन-से सवाल पूछ सकना, उनकी बातों का क्या मतलब हो सकता है, कितनी बात न मानना, यह सब भी यह किताब बख़ूबी सिखाती है। मैं इस किताब से व्यक्तिगत रूप से जुड़ गयी थी। अंडरलाइन करते हुए पढ़ने की आदत शुरू से थी, पर पहली बार हुआ था कि कोई किताब पढ़ते हुए लगा जैसे हर पन्ने पर इतने वाक्य हैं, जिनको अंडरलाइन करना है, कोट की तरह हैं या हमेशा याद रखना हैं। इस किताब ने मार्जिन पर उससे जुड़ा एक लेबल या थीम लिखना भी सिखाया।

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हर दशक में लगभग एक या दो शहर बदलना मेरे जीवन का हिस्सा रहा। कभी काम की वजह से या कभी व्यक्तिगत। किताब हमेशा साथ रहने लगी। बदलते दशक और दिशा में इसे दोबारा पढ़ा। 20s में इस किताब ने जिस प्रकार स्त्री-आधारित सोच और नज़रिया दिया, वह एकदम अनूठा था। उस समय सवाल करने, जवाब ढूँढ़ने से इतर आज़ाद-ख़याली और उद्देश्य पर ध्यान ज़्यादा गया। 30s की उम्र में इसके शीर्षक पर ही ध्यान गया और जो सिर्फ़ ख़याल के तौर पर था, वह स्पष्ट उद्देश्य बना।

इसका असर मेरे व्यक्तिगत जीवन में यूं भी रहा। टीनेज में जो सिर्फ़ एक सपना था कि एक घर हो, उसमें यह हो, वहाँ हो; वह सपना एक ठोस डेडलाइन के साथ, ओनरशिप के साथ दिखने लगा। वर्जीनिया कहती हैं औरतों को इसलिए भी लिखने में सदियों की देर हुई क्यूंकि वे आमतौर पर रसोई या लिविंग रूम में लिखती थीं। यह हमेशा से या तो काम की जगह या मेहमानों की आवाजाही की और सभी की मिली-जुली जगह रही है। इसलिए औरत को कम-से-कम अपने लिए एक कमरे का जुगाड़ रखना चाहिए। यह बात 30s में घर कर गयी थी। और तय किया था कि अपने नाम पर एक घर तो होना चाहिए।

हिन्दुस्तानी समाज में आमतौर पर औरत का घर तभी होता है जब टैक्स में फ़ायदा हो, मजबूरी हो या माता-पिता का घर हो। और भी कुछ कारण हो सकते हैं जो सामाजिकता से जुड़े हैं, पर इस किताब के कारण यह निर्णय एकदम स्पष्ट था कि भले ही माता-पिता का घर हो, ससुराल का घर हो, पति का घर हो, अपना भी एक घर होगा। इस निर्णय की डेडलाइन तय कर ली थी और यह लक्ष्य हासिल कर लिया है, तब भी यही लगता है कि एक किताब न होती तो जीवन किस दिशा में जाता! किसी लेखिका/किताब का इतना असर जीवन में हो सकता है, मेरी उम्र की कितनी महिलाएं (मेरे इर्द-गिर्द) हैं जो इसे इस तरह देख सकती हैं! फिर यह भी सोचती हूं कि वर्जीनिया के इस किताब को लिखने की वजह से शायद मेरी तरह कई औरतों ने अपना कमरा, अपना घर अपना रखा हो!

घर के अलावा जो सवाल, अवलोकन, इतिहास से जोड़कर निष्कर्ष, दुनिया का ताना-बाना भी इस किताब से समझा है, उस पर कभी और… अभी सोचती हूं जिन्होंने इससे मुलाक़ात नहीं की है, उन्हें इस किताब के कुछ फ़ोटो दिखा दूं। ऐसे वाक्य जो कभी वाह और कभी आह निकाल दें, इतने सारे मिलते हैं कि एक लंबा लेख अलग से चाहिए होगा। कुछ उदाहरण यहाँ रखती हूँ:
Fiction must stick to facts, and the truer the facts, the better the fiction

कुछ ऐसे निष्कर्ष जैसे लगे कि इतिहास हमारे सामने ऐसे ही तो घट रहा था और हम उसके साक्षी थे:
That a famous library has been cursed by a woman is a matter of complete indifference to a famous library
या
They wrote as women write, not as men write!
या
Money dignified what is frivolous if unpaid for.

विशेषण जिस तरह लगे हैं लिखने में, आपको वो सब वैसा ही महसूस होता है जैसे अगले वाक्य में क़दमों की हड़बड़ी और जल्दबाज़ी जिस तरह चाहिए, वैसी ही महसूस की जाएगी:
When she had to rapidly walk, she chose words like…wash and tumult of ideas that she could not sit still, she had to walk with extreme rapidity.

लेखन, समाज और एकाकी होने या न होने से जुड़ता विश्लेषण भी बहुत सुलझे हुए ढंग से लिखा गया है, जैसे:
Masterpieces are not single and solitary births; they are the outcome of many years of thinking in common, of thinking by the body of the people, so that the experience of the mass is behind the single voice.
या

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About Jane Austen’s Pride and prejudice – this was the chief miracle about it. Here was a woman about the year 1800 writing without hate, without bitterness, without fear, without protest, without preaching….
या

For someone with these things she wrote – ..marks that jerk in them, that indignation, one sees… she is at war with her a lot.

और अंतत: कुछ ऐसे साहित्यिक वाक्य, जिनसे लगे कि अपने ही दिल को काटकर एक हिस्सा वहाँ रख दिया हो!
Truth had run through my fingers. Every drop had escaped.

अब 40s में यह किताब फिर पढ़ रही हूँ। चाव यह भी है कि इस दशक में यह किताब क्या देकर जाती है। पिछले 20 सालों से एक बात मन में चलती रहती है कि वर्जीनिया ने सौ साल पहले वह सब लिख दिया कि सालों लग जाएंगे यह सोचते हुए कि और क्या लिखें! यह किताब लिखने के लिए वर्जीनिया को शुक्रिया कहना सिवाय एक औपचारिकता के क्या है।

akanksha tyagi, आकांक्षा त्यागी

आकांक्षा त्यागी

अपने करियर में पहले क़रीब 10 वर्ष पत्रकार रहीं आकांक्षा पिछले क़रीब 15 वर्षों से शिक्षा में नवाचार के क्षेत्र में सक्रिय हैं। शोधकर्ता और ट्रेनर के रूप में वह राष्ट्रीय स्तर तक के प्रोजेक्ट लीड कर चुकी हैं। वर्तमान में एलएलएफ़ के साथ बच्चों की शिक्षा से जुड़े विषयों पर अपनी सेवाएं दे रही हैं। साहित्य, कला और सिनेमा में गहरी रुचि रखती हैं और गाहे ब गाहे सरोकार से जुड़े विषयों पर लेखन में भी।

6 comments on “हर उम्र की स्त्री के लिए यूनिवर्सिटी है यह किताब

  1. मैंने यह किताब तो नहीं पढ़ी है पर आपका लिखा हुआ पढ़ कर दिल बेचैन हो गया है, इस किताब को पढ़ने के लिए। कहीं ना कहीं मन की दबी वह इच्छा कि
    अपना भी एक कोना हो
    शब्द सुनहरे बोना हो
    कविताओं का पौध जगे
    लिख पढ़ करके सोना हो।
    …..
    जाग जाता है यह ख्याल कभी-कभी कि जो ढह जाता है, वह सिमट कर फिर से भी तो पहाड़ बन सकता है…
    बहुत-बहुत धन्यवाद आपका।

    1. शुक्रिया दीक्षा.

      वाह, कितनी अच्छी कविता के साथ अपनी इच्छा ज़ाहिर की आपने.
      यह किताब ज़रूर पढियेगा.

      प्यार

    2. बहुत खूबसूरती से अपनी बात कही है।
      अ रूम आफ़ वन्स ओन
      पढ़ी न भी हो तो भी चर्चा खूब हुई और नाम सबका जाना -पहचाना है।

      बेशक किताब पढ़ने की जिज्ञासा जागृत हुई है।
      शुक्रिया।

  2. किताब के बारे में काफी महसूस किया जो कहना चाहता लेखिका ने पर जो उदाहरण दिए उनका हिंदी अनुवाद भी होता तो ज्यादा करीब पहुंचती ।

    ये किताब हिंदी में मिले तो पढ़ना चाहूंगी ।
    जयश्री राय का उपन्यास दर्दजा याद आता रहा ये सब पढ़ते समय ।
    धन्यवाद आकांक्षा ..

    1. वर्जिनिया वुल्फ की किताब ‘अ रूम ऑफ ऑन्स’इस व्यस्तता भरे जीवन मे किताबों की दुनिया में फिर लौटने की प्रेरणा देती है। आपने इसके एक एक वाक्य को प्रेणादायी बताया है, जो है भी।इसमें जिन लक्ष्यों के ज़िक्र है, वे न केवल स्त्री के लिए बल्कि हर उस व्यक्ति के लिए ज़रुरी लगते हैं, जो समाज में विशेष महत्व के साथ खुद के आत्मविश्वास के लिए भी आवश्यक लगते हैं। आदरणीय मधु मामी की तरह मुझे भी कोट्स का हिंदी में न होना खला।

    2. वर्जिनिया वुल्फ की किताब ‘अ रूम ऑफ ऑन्स’इस व्यस्तता भरे जीवन मे किताबों की दुनिया में फिर लौटने की प्रेरणा देती है। आपने इसके एक एक वाक्य को प्रेणादायी बताया है, जो है भी।इसमें जिन लक्ष्यों के ज़िक्र है, वे न केवल स्त्री के लिए बल्कि हर उस व्यक्ति के लिए ज़रुरी लगते हैं, जो समाज में विशेष महत्व के साथ खुद के आत्मविश्वास के लिए भी आवश्यक लगते हैं। मुझे भी कोट्स का हिंदी में न होना खला।

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