
- November 30, 2025
- आब-ओ-हवा
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पाक्षिक ब्लॉग मिथलेश राय की कलम से....
नलिनी जयवंत, जो पहली ही फ़िल्म से बनी स्टार
रविवार का दिन है, बच्चन चाचा मुहल्ले के कुछ लोगों के बीच बैठे गप्पें हांके जा रहे हैं। इनमें ज्यादातर ऐसे हैं, जो बच्चन चाचा के दीवाने हैं। उन लोगों का मानना रहा है कि बच्चन चाचा से बड़ा जानकार आदमी उन्हें कभी कोई मिला ही नहीं। बच्चन चाचा भी उन लोगों को यहां-वहां की बात सुनाकर बनाये रहते हैं। उनको देखकर मुरारी भाई बहुत ग़ुस्सा करते, वे उन्हें लोगों से घिरा देखकर कहते “जहां पेड़ न रूख तहां रेने प्रधान”। वैसे आज का विषय देशप्रेम है। वे लोगों को जवाहर लाल नेहरू, भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद के क़िस्से सुनाये जा रहे हैं। उनके क़िस्से इतिहास की किसी किताब में नहीं मिलते। उन्होंने स्वयं इन क़िस्सों को सुनी-सुनायी बातों के आधार पर बनाया है।
वे अभी बता रहे हैं। आप लोग जानते हैं? कि नेताजी सुभाषचंद्र बोस की एक माला कितने में बिकी थी? सबने कहा नहीं.. फिर थोड़ा-सा रुककर गंभीर मुद्रा में वे बोले, ‘पूरे सात लाख में’। ‘किसने खरीदी’, नरेश ने पूछा? वे बोले “शेखर” ने, अब तक दलीप सिंह जी वहां पहुंच चुके थे, पर बच्चन चाचा को इसकी जानकारी न थी। उन्होंने धीरे से पूछा, ‘शेखर कि अशोक कुमार?’ इतना सुनते ही बच्चन चाचा बिदक गये, पीछे घूमे तो देखा दलीप सिंह और मुझे पाया। वे झट से बात बदलते हुए बोले, ‘अरे सरदार जी आप.. हटो भाई सरदार जी को जगह दो, और दिन्नू जा भागकर दो कट चाय ले आ..।’
बच्चन चाचा बड़े गुरुघंटाल आदमी थे। वे अब बात घुमाने में लगे थे ताकि लोग उनके झूठ पर ध्यान न दे पाएं। वे बोले, ‘सरदार जी का आज हमारी सभा में बहुत स्वागत है। आज हम लोगों को सरदार जी फ़िल्मी क़िस्सा सुनाएंगे, बजाओ सब लोग ताली..’ सरदार जी को क्या चाहिए! इसी में तो उन्हें असली आनंद आता है। वे शुरू हो गये, तभी किसी ने कहा अरे! आप वो एक हीरोइन के बारे में उस दिन बता रहे थे ना कि वह मधुबाला के बाद कोई ख़ूबसूरत हीरोइन थी तो वही…
कौन? नरगिस, साधना, मीना कुमारी, आशा पारिख… नहीं भाई, वो जब पिछले रविवार हम लोग सुरेंदर की बुक शॉप पर बैठे थे। ‘अच्छा वो नलिनी जयवंत.. वाह क्या बात छेड़ दी भाई। तबीयत हरी हो गयी। नलिनी जयवंत वाक़ई बहुत ख़ूबसूरत हीरोइन थी। अभिनेत्री नूतन की रिश्तेदार थी, पर उसके पिता उसके फ़िल्म में काम करने के पक्ष में नहीं थे। फिर भी उसने काम किया और जिस डायरेक्टर के साथ पहली फ़िल्म में काम किया, उसी से शादी भी कर ली, पर बहुत जल्दी ही पति का देहांत हो गया। लेकिन इसका बहुत नुक़सान उसे नहीं हुआ। फ़िल्में मिलती रहीं। उसकी सबसे यादगार फ़िल्में संग्राम व समाधि, जो उसने अशोक कुमार के साथ कीं, हिट रही थीं। फ़िल्म ‘समाधि’ सुभाष बाबू के जीवन पर आधारित थी।

अभी सरदार जी कुछ बोलते कि बच्चन चाचा बीच में बोल पड़े, सरदार चाय के साथ गरम भजिया लीजिए और उन्हें कुछ इशारे से कहा। सरदार जी बात समझ गये और बोले, ‘नलिनी अच्छी हीरोइन ही नहीं, वह अपने समय की ख़ूबसूरत अभिनेत्रियों में से एक थी, वह पहली ऐसी अभिनेत्री थी, जिसे अपनी पहली ही फ़िल्म से मिल गया था सितारा का ख़िताब। उसकी कई फ़िल्में ‘मुनीम जी’, ‘रेलवे प्लेटफ़ॉर्म’, ‘कितना बदल गया इंसान’, ‘बहन’, ‘जादू’, ‘नवबहार’ मैंने देखीं। लेकिन ‘कालापानी’ फ़िल्म बेमिसाल है। इस फ़िल्म के दो गाने “दिल लगा के क़दर गई प्यारे” और “नजर लागी राजा तोरे बंगले पर”, जो नलिनी पर ही फ़िल्माये गये, उसमें उनकी बेजोड़ अदाकारी देखी जा सकती है।
इस फ़िल्म में देवानंद तो हैं ही, नलिनी के सामने मधुबाला थी पर दर्शकों की नजर में नलिनी ही बीस दिखाई पड़ी। फ़िल्म की कहानी भी ज़बरदस्त। करण (देवानंद) कालापानी की सज़ा भुगत रहे अपने पिता को रिहा कराना चाहता है इसलिए वह हैदराबाद पहुंचता है, जहां उसकी मुलाक़ात मधुबाला जो एक अख़बार में काम करती है, उससे होती है। तथा अपने पिता की बेगुनाही का सबूत लेने करण किशोरी के पास पहुंचता है। किशोरी से उसे वकील और लाला के ख़िलाफ़ पत्र मिल भी जाता है। फिर भी वह उन्हें सज़ा नहीं दिला पाता है क्योंकि सरकारी वकील (किशोर साहू) वह पत्र जला देता है। और करण पर हमले पर हमला करवाता है। अंत में जब सभी रास्ते बंद हो जाते हैं। किशोरी (नलिनी जयवंत) असल पत्र लेकर करण को देती है, जिसे पत्रकार आशा अख़बार वाले को देती है। और ख़बर छपने के कारण वह केस का पुनः खुलासा अदालत में होता है और वकील और लाला को सज़ा होती है। करण का पिता रिहा हो जाता है। इस फ़िल्म में अख़बार और इससे जुड़े लोगों को ईमानदार और कर्त्तव्यपरायण बताया है। इस फ़िल्म को देखकर मेरे कई मित्र उन दिनों पत्रकार हो गये थे, इस फ़िल्म की कहानी बंगला फ़िल्म से ली गयी थी, जो अंग्रेज़ी नॉवेल “beyond this place” पर बनी थी।
अंत में बच्चन चाचा ने सरदार जी को धन्यवाद देते हुए कहा, “मान गये उस्ताद”, सरदार जी भी उनकी बात पर मुस्कुराते हुए बोले, “तुम जानते हो, बच्चन मुझे इतनी तवज्जो किसलिए दे रहा है?” मैंने पूछा क्यों। “अरे! भाई वो सुभाषचंद्र बोस के बारे में सारा क़िस्सा समाधि ‘फ़िल्म’ देखकर ही तो सुना रहा था।” उनकी बात सुनकर मुझे भी हंसी आ गयी और वो भी हंसने लगे…

मिथलेश रॉय
पेशे से शिक्षक, प्रवृत्ति से कवि, लेखक मिथिलेश रॉय पांच साझा कविता संग्रहों में संकलित हैं और चार लघुकथा संग्रह प्रकाशित। 'साहित्य की बात' मंच, विदिशा से श्रीमती गायत्री देवी अग्रवाल पुरस्कार 2024 से सम्मानित। साथ ही, साहित्यिक त्रैमासिक पत्रिका "वनप्रिया" के संपादक।
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