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वेब सीरीज़ समीक्षा स्वरांगी साने की कलम से....

द गेम... यानी खेल में आप अकेले कभी नहीं

            कभी साहित्य को समाज का दर्पण कहा जाता था, आज वह स्थान आभासी दुनिया का है। भले ही, वह सब आभासी कहलाता है लेकिन समाज का सच ओटीटी प्लेटफ़ॉर्म, सोशल मीडिया आदि पर दिख रहा है। समाज में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी, स्त्री-पुरुष समानता को जीने वाली महिलाएं और स्त्री के सशक्तिकरण से डरते पुरुष इसी समाज का हिस्सा हैं, जिनके बारे में वर्चुअल नेटवर्क पर खुलकर लिखा-पढ़ा, बोला-दिखाया जा रहा है।

नेटफ़्लिक्स पर ‘द गेम: यू नेवर प्ले अलोन’ तमिल भाषा की थ्रिलर टेलीविज़न शृंखला इसी महीने आयी है। सीरीज़ के नाम से ही पता चल जाता है कि खेल जिसे आप कभी अकेले नहीं खेलते। गेमिंग की दुनिया में एक तरफ़ खेलने वाले होते हैं, दूसरी तरफ़ उसे बनाने वाले। खेलने वाले केवल खेलते हैं, ऐसा नहीं है और बनाने वाले केवल बनाते हैं, ऐसा भी नहीं। वे दोनों खिलाड़ी होते हैं, जो बनाने वालों के लिए दिक़्क़तें पैदा करते हैं, शह और मात देते हैं। बनाने वालों की आपसी प्रतिस्पर्धा भी इस खेल का एक हिस्सा है। इसमें यदि कोई उत्साही गेम डेवलपर लगातार अपना दबदबा जमाये तो उससे रश्क करने वाले तब और बढ़ जाते हैं, जब वह महिला हो। इस सीरीज़ में दिखाया गया है कि पुरुषवादी मानसिकता उस पर जानलेवा हमले तक करवाती है, लेकिन वह यह भी दिखाती है अब महिलाएँ शिकस्त खाने नहीं, शिकस्त देने को तैयार हैं। थ्रिलर सीरीज़ में साइमन के. किंग का संगीत रहस्य की पृष्ठभूमि तैयार करता है।

कथानक

पहला सीज़न 7 एपिसोड का है। पहले एपिसोड की शुरूआत आपको सन् 2016 में आये ‘ब्लू व्हेल चैलेंज’ नामक ऑनलाइन गेम की याद दिलाती है, जिसे 50 दिवसीय आत्मघाती खेल माना गया था। आरोप लगा था इस गेम को खेलने से कई युवाओं की मौत हुई थी। प्रतिभागियों को 50 दिनों में कई चुनौतियाँ पूरी करनी होती थीं, जो उन्हें मौत के दरवाज़े तक भी ले जाती थी। बहरहाल ‘द गेम’ सीरीज़ के पहले दृश्य से ऐसा लगा कि यह उस चैलेंज गेम पर बनी है, जबकि यह उत्साही गेम डेवलपर काव्या पर केंद्रित है, जिसे ऑनलाइन और वास्तविक दुनिया में क्रूर उत्पीड़न का शिकार होना पड़ता है।

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काव्या जीवन को तनावों के बोझ से नहीं, हँसते-खिलखिलाते हुए जीना चाहती है पर उसे अपने करियर के स्त्री-द्वेषी दबावों का सामना करना पड़ता है। धीरे-धीरे वह परेशान होने लगती है। श्रद्धा श्रीनाथ ने काव्या की भूमिका के चुलबुलेपन और धीर-गंभीर रूप दोनों को अच्छा साधा है। काव्या और उसके आसपास के लोगों के जीवन में उसे अवॉर्ड मिलने के बाद जितनी उथल-पुथल होती है, उसे तेज़ घटनाक्रमों में दिखाया गया है। पुलिस अफ़सर भानुमती (चांदिनी तमिलरासन) का पहला दृश्य उसे ज़री की सिल्क साड़ी में इन्वेस्टिगेशन करते हुए दिखाया गया है। वह पुलिसकर्मी है, महिला भी है। इसे इस तरह पहली बार देखा जा सकता है। बाद में वह फ़ॉर्मल पेंट-शर्ट और गणवेश (युनिफ़ॉर्म) में भी दिखती है लेकिन उसका दो-तीन दृश्यों में साड़ी में दिखाना उस मिथ को तोड़ता है कि कामकाजी महिला है, तो उसे पश्चिमी कपड़ों में ही दिखाया जाना चाहिए।

सहायक भूमिकाएं

गेमिंग दुनिया की जटिल बारीकियों को सीरीज़ में देखा जा सकता है। गेमिंग संस्कृति के अनुचित पहलुओं के साथ स्त्री-विद्वेष पूरी बर्बरता से दिखता है। इसमें हर उस स्त्री पर हमला होता है, जो खुलकर काव्या के पक्ष में बोलती है। काव्या की कंपनी के विदेशी निवेशक के लिए “डाउनलोड ही सब कुछ है।” इससे यह भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था के पक्ष को भी छूकर गुज़रता है। मोबाइल हमारा वर्तमान और भविष्य है। लेकिन उसके ख़तरे को इसमें अधिक दिखाया गया है जैसे काव्या की किशोर भतीजी तारा (हेमा) के अनचाहे पिक्चर्स डाउनलोड हो जाना। काव्या का पति अनूप (संतोष प्रताप) समझदार भूमिका में है जो काव्या और तारा दोनों के लिए खड़ा होता है।

इस पूरे मानसिक-शारीरिक-सामाजिक-मनोवैज्ञानिक संघर्ष में काव्या की सहकर्मी ऐनी (श्यामा हरिणी) भी उसका हमेशा कंधे से कंधा मिला साथ देती है। यह न केवल एक थ्रिलर है, बल्कि युवाओं और किशोरों व युवा वयस्कों के अभिभावकों की भी आँखें खोलने वाला है।

निष्कर्ष

यह सीरीज़ इस ओर भी इशारा करती है कि मोबाइल डेटा सस्ता होने से भी महिलाओं के प्रति द्वेष अधिक पनप रहा है। फ़र्ज़ी ख़बरों और राजनीतिक दाँव-पेंचों में आप कभी अकेले नहीं खेलते, मतलब “द गेम: यू नेवर प्ले अलोन”। हालाँकि, जैसे-जैसे सीरीज़ आगे बढ़ती है, ख़ामियाँ सामने आती हैं। रहस्य पूर्वानुमानित होता जाता है, गेमिंग की दुनिया की चमकदार पृष्ठभूमि बनी रहती है। सारे प्लॉट आकार पाने से पहले थोड़े फीके पड़ने लगते हैं। फिर भी अगर आप क्राइम थ्रिलर पसंद करते हैं, तो यह सीरीज़ देखना आपको अच्छा लगेगा।

ओवरऑल

सीरीज़ – द गेम: यू नेवर प्ले अलोन
भाषा – तमिल
निर्देशन – राजेश एम. सेल्वा
पटकथा – दीप्ति गोविंदराजन
संगीत – साइमन के. किंग
कलाकार – श्रद्धा श्रीनाथ, संतोष प्रताप, चांदनी तमिलारासन, बाला हसन आर. सुभाष सेल्वम, विविया संथ
ओटीटी – नेटफ़्लिक्स
राय – देखी जा सकती है

swarangi sane, स्वरांगी साने

स्वरांगी साने

प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित। यूट्यूबर, कविता, कथा, अनुवाद, संचालन, स्तंभ लेखन, पत्रकारिता, अभिनय, नृत्य, साहित्य-संस्कृति-कला समीक्षा, आकाशवाणी और दूरदर्शन पर वार्ता और काव्यपाठ। 2 कविता संग्रह, 6 किताबों का अनुवाद, 3 का संपादन, फ़िल्मों के हिंदी सबटाइटल्स, पेटेंट दस्तावेज़ों व भारत सरकार के वेब इंटरफ़ेस आदि स्टार्ट अप्स के लिए अनुवाद।

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