sakiba, साकीबा
साकीबा का दसवाँ वार्षिक समारोह: कहानियों, कविताओं, ग़ज़लों के नाम एक दिन और अतिथि कवियों-कलाकारों का सम्मान

साहित्य की बातों को बुनने का जुनून ‘साकीबा’

 

           बहुचर्चित साहित्यिक संस्था ‘साहित्य की बात’ (साकीबा) का दसवाँ वार्षिक समारोह विदिशा में हुआ तो साहित्य प्रेमियों के एक बड़े वर्ग में इसे लेकर सुगबुगाहट रही। पिछले एक दशक में साकीबा के संवादों और समारोहों ने अपना एक हस्तक्षेप तो किया ही है, साहित्यिक गलियारों में हचलचल भी पैदा की है। हालांकि अब तक इसके कलेवर और फलक को लेकर एक अनिश्चितता इंगित करती है कि यह संस्था संवाद की आत्मीयता, साहित्य की सामाजिकता को केंद्र में रखती है न कि किसी विशेष मंतव्य या गुटबाज़ी को… साहित्य की बातों को हर बार कुछ नये ढंग से बुनने के इस जुनून के पीछे एक पूरी टीम है, जिसके निजी प्रयासों के बल पर यह साहित्यिक समारोह अपनी निरंतरता बनाये हुए है। जैसा कि स्वागत उद्बोधन में आनंद उपाध्याय ने कहा भी कि इस बार कार्यक्रम होने की संभावना न के बराबर थी, लेकिन सबके मन और सहयोग से यह होते होते हो ही गया।

विदिशा के एक निजी होटल के सभागार में साहित्यिक गरिमा और उत्साह के बीच कार्यक्रम का शुभारंभ सिरेमिक कलाकार देवीलाल पाटीदार के प्रस्तावना वक्तव्य से हुआ, जिसमें उन्होंने साकीबा की गतिविधियों और उपलब्धियों का विस्तृत विवरण प्रस्तुत किया। कला और समाज के आपसी संबंध पर अपने विचार रखे। इसी अवसर पर संस्था के रंगीन पत्र का ताज़ा अंक विमोचित किया गया, जिस पर सुधी पाठक वीरेंद्र जैन ने अपने विचार रखे।

sakiba, साकीबा

प्रथम सत्र – कहानी पाठ

साकीबा का यह एक दिवसीय आयोजन दो सत्रों में संपन्न हुआ। पहला सत्र कथा साहित्य पर केंद्रित रहा। भोपाल निवासी कथाकार सुश्री अनिता सिंह, दतिया निवासी प्रसिद्ध कथाकार राज बोहरे और अध्यक्षता कर रहे विदिशा के ही राजेंद्र श्रीवास्तव ने अपनी कहानियाँ प्रस्तुत कीं। मुख्य अतिथि डा. सुरेश गर्ग ने कहानियों पर सारगर्भित टिप्पणी करते हुए इस साहित्यिक प्रयोग को अभिनव पहल बताया। कवि रवीन्द्र स्वप्निल प्रजापति ने कथाओं पर अपनी आलोचकीय प्रतिक्रिया दी। इस सत्र का संचालन बैंककर्मी सुश्री निश्चला शर्मा ने किया।

द्वितीय सत्र – कविता पाठ

उधेड़ उधेड़ के हर बार तुझको बुनता हूं
न जाने कैसे तुझे ओढ़ना बिछाना है…
गोलमेज़ें जब उठेंगी बात करके प्यास पर
बिसलरी की बोतलों का मुंह खुला रह जाएगा…

भवेश दिलशाद के ऐसे अशआर ने उस दूसरे सत्र में भरपूर दाद बटोरी, जो काव्य संध्या के रूप में संपन्न हुआ। इस सत्र की अध्यक्षता भोपाल निवासी कवि प्रज्ञा रावत ने की और मुख्य अतिथि नवल शुक्ल रहे। मधु सक्सेना की दो कविताओं ने श्रोताओं की वाहवाही लूटी: ‘नदियों का कोई अस्पताल नहीं होता क्या’ और ‘मुझे प्यार हो जाता है कभी देवदास से, क​भी पुरस्कार की मधूलिका से, कभी चंदन से…’।

मुझ पर ही हंसे सब लोग
जब जब गाया मैंने कबीर का पद…
और
एक आवाज़ आज़ाद होती है
सच को ज़ोर से बोलकर

कविताओं की ऐसी पंक्तियों पर सभागार ने कवि ब्रज श्रीवास्तव को सराहा। आनंद सौरभ उपाध्याय, गोपी नवीन शुक्ला, मिथलेश रॉय, महेंद्र वर्मा और नवनीता पांडेय आदि की काव्य पंक्तियों से भी सभागार जीवंत बना रहा। इस सत्र का संचालन कर रहे कवि अस्मुरारी नंदन मिश्र को उनकी इस कविता पर दाद मिली:

मैं चाहता हूं राजा गाये गीत
पर अपने राग को
घोषित न करे राष्ट्रीय राग…

इस सत्र में मदन जरिया, श्री खजान सिंह, रेखा दुबे, दीपक तिवारी, भारत सिंह आदि कवियों ने अपनी कविताओं से श्रोताओं को भावविभोर किया। सुदिन श्रीवास्तव की ग़ज़लों और शेरों ने ख़ूब समां बांधा…

जाने कैसी सरफिरी आहट हुई
बेख़ुदी टूटी तो घबराहट हुई…
जब फ़ैसले पे आओ तो इक बार सोचना
ये आख़िरी क़दम है शुरूआत नहीं है..

bhavesh dilshad, braj shrivastav

सत्र के अंतिम कवि के रूप में नवल शुक्ल ने गांधी के विरोध में उठने वाले और हत्या को गांधी का वध बतलाने वाले स्वरों पर तंज़ करती कविता ‘आप इसे ऐसे भी समझ सकते हैं’ का पाठ किया। फिर राजेंद्र श्रीवास्तव द्वारा आभार प्रदर्शन के बाद कार्यक्रम संपन्न हुआ।

विशिष्ट उपस्थिति और आकर्षण
समारोह में शिक्षाविद आकांक्षा त्यागी, वास्तुविद शिखा पाटीदार के साथ ही डॉ. जगमोहन शर्मा, डा. नीरज शक्ति निगम, विजय शर्मा, महेश श्रीवास्तव, आर.के. बोस, सुनील जैन, पुलिस अफ़सर सुनीता सिंह, श्री संतोष नामदेव, डा परमानन्द मिश्रा, दिलीप रघुवंशी, श्रीमती सुमन श्रीवास्तव सहित अनेक साहित्यप्रेमी मौजूद रहे।

इस उपस्थिति के बीच बोधि प्रकाशन से प्रकाशित और ब्रज श्रीवास्तव कृत कविता संग्रह ‘ऊब’ का लोकार्पण भी हुआ। इस संग्रह की कविताओं पर सुश्री आकांक्षा ने प्रकाश डाला। कार्यक्रम में विदिशा के बाहर से आये अतिथि कवियों और कलाकारों सहित साकीबा के संचालक ब्रज श्रीवास्तव का स्वागत कैलाश सत्यार्थी फ़ैन्स क्लब के श्री देवेश आर्य, श्री विमल तारण, श्री घनश्याम बंसल, ब्रह्मदत्त शर्मा, वेद प्रकाश शर्मा, इंदिरा शर्मा, प्रेमनारायण आर्य, हर्षल एवं साथियों द्वारा किया गया।

-प्रेस विज्ञप्ति

2 comments on “साहित्य की बातों को बुनने का जुनून ‘साकीबा’

  1. शानदार आयोजन की शानदार रिपोर्ट’
    कहानी और कबिताओं के पुरे आयोजन में सभी लोग पूरे समय उपस्थित रहें यह भी इस कार्यक्रम एक की विशेषता थी

    मैं चाहता हूं राजा गाये गीत
    पर अपने राग को
    घोषित न करे राष्ट्रीय राग…

  2. शानदार आयोजन की तारों-सी चमकती शाब्दिक रिपोर्ट…
    बहुत-बहुत बधाई

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *