bhaskar chandavarkar, chhaya ganguly
पाक्षिक ब्लॉग वि​वेक सावरीकर 'मृदुल' की कलम से....

छाया गांगुली की आवाज़ के साथ थोड़ा-सा रूमानी हो जाएं

             अमोल पालेकर निर्मित और निर्देशित फिल्म “थोड़ा सा रूमानी हो जाएं” तो आप सुधि रसिकों को याद होगी ही। इस फ़िल्म के शीर्षक गीत में गायिका छाया गांगुली ने अपनी आवाज़ का जादू बिखेरा है। छाया गांगुली का नाम “आपकी याद आती रही” जैसे मशहूर गीत के लिए हमेशा याद रखा जाएगा। पर वे इससे परे विविध भारती पर संगीत सरिता कार्यक्रम के लिए ख्यात गायकों और वादकों की दुर्लभ शृंखला को रिकॉर्ड करने के लिए भी जानी जाती हैं।

वैसे तो आज हम जिसकी बात कर रहे हैं, इस फ़िल्म के शीर्षक गीत में ही छायाजी के दिल की गहराई से गायन की शैली के दर्शन होते हैं। मगर एक गीत जो फ़िल्म में एक सामान्य संकोची लड़की (फ़िल्म में इस किरदार का नाम बिन्नी है) से एक आत्मविश्वासी लड़की बनने की यात्रा को दिखाता है वो है- “मैं सुन्दर हूँ, मैं जान गयी, पहचान गयी”। इन दोनों ही गीतों का आकर्षण इतना गहरा है कि इस बार हम दोनों पर ही बात करने का निर्णय लिया है।

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तो शीर्षक गीत की शुरूआत फ़िल्म के प्रारम्भ से ही होती है- “बादलों का नाम न हो, अम्बर के गाँव में, जलता हो जंगल खुद, अपनी छाँव में”, इन पंक्तियों में संगीत की लहरियों पर छायाजी जैसे तन्हाई के दर्द को उजागर कर रही हैं। लेकिन तुरंत बाद कुछ ऊर्जा भरी पंक्ति आती है- “यही तो है मौसम, आओ तुम और हम, बारिश के नग्मे गुनगुनाएं…” और तब वे शीर्षक की पंक्ति गाती हैं- “थोड़ा सा रूमानी हो जाएं”। यहाँ “हो” के साथ ही तबले की उठान परिदृश्य को ख़ुशनुमा कर देती है। यह गीत न केवल सुरीला और अर्थपूर्ण है बल्कि यह फ़िल्म की कथा को भी सार रूप में प्रस्तुत कर देता है। कमलेश पांडे की कलम से निकले इस गाने को और पूरी फ़िल्म के संगीत पक्ष को संभाला है वरिष्ठ सितार और सुरबहार वादक भास्कर चंदावरकर ने।

चन्दावरकरजी की ख़ासियत यह है कि शास्त्रीय संगीत के गहरे अभ्यासी होने के बावजूद वे जब तक ज़रूरी न हो, रागों के सीधे प्रयोग से बचते हुए सामान्य श्रोता के हृदय में बसे संगीत को खोजते और परोसते हैं। इसलिए थोड़ा सा रूमानी… गीत की काव्यात्मक सुंदरता अंदर तक जाती है। वो तेज़ परफ़्यूम नहीं, लोबान या चन्दन अगरबत्ती की तरह सुनने वालों के मन को महकाती रहती है। यहाँ तक कि गाना ख़त्म होने के बाद भी उसकी अनुगूँज निनादित होती रहती है। इस गाने को दो-तीन बार उपयोग में लाया गया है। विक्रम गोखले और अनीता कंवर (धारावाहिक बुनियाद की लाजोजी) के बीच पनपते प्यार को पल्लवित होते दिखाने वाले दृश्य में इस गाने का एक अंतरा विनोद राठौड़ की आवाज़ में है- “रास्ता अकेला हो, हर तरफ अँधेरा हो… यही तो है मौसम आओ, तुम और हम दर्द को बांसुरी बनाएं…” पुरुष स्वर में ताल की गति तेज़ रखी गयी है।

अमोल पालेकर की यह फ़िल्म निश्चित तौर पर क्लासिक की श्रेणी में रखी जाना चाहिए। पूरी फ़िल्म में सूखे और अकाल को प्यारविहीन जीवन और बारिश को अपना प्यार पाने के रूपक से रेखांकित किया गया है। संवाद ज़्यादातर कविता में और लयबद्ध हैं। किरदार बात करते हुए गाने लगते हैं या गाने के बीच में बोलते भी हैं। इसी फ़िल्म में नाना पाटेकर ने बारीशकर का अद्भुत फ़न्तासीयुक्त किरदार पेश किया है, जो कहता है- “जी हाँ वही बारिश, जो आसमान से आती है, बूंदों में गाती है…”। दूसरा गाना “मैं सुन्दर हूँ” की शुरूआत अनिता कँवर के अपने ऊपर विश्वास करने की चहक से होती है। नाना पाटेकर का यह कहना कि “आईना दीवार पर नहीं होता, दिल में होता है। तुम खुद से बोलो, पूरे आत्मविश्वास से कहो कि मैं सुंदर हूं…” और तब छाया जी की आवाज़ में बहुत मासूमियत के साथ बिन्नी गाती है- “तारों ने कहा, फूलों ने सुना, बदरा ने कहा, चंदा ने सुना…”।

भास्कर चंदावरकर का संगीत चमत्कृत नहीं करता, बस अपना-अपना लगता है। जैसे कि वो भी एक किरदार हो और यही उनकी विशेषता है। रंगमंच के रसिक मराठी नाटक घासीराम कोतवाल में उनके सांगीतिक प्रयोग को आज भी नहीं भूले हैं। आस्कर के लिए नामांकित और राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित मराठी फिल्म ‘श्वास’ में भी आपने संगीत दिया था। जुलाई 2009 में भास्कर चंदावरकरजी का निधन हो गया।

विवेक सावरीकर मृदुल

सांस्कृतिक और कला पत्रकारिता से अपने कैरियर का आगाज़ करने वाले विवेक मृदुल यूं तो माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्ववियालय में वरिष्ठ अधिकारी हैं,पर दिल से एक ऐसे सृजनधर्मी हैं, जिनका मन अभिनय, लेखन, कविता, गीत, संगीत और एंकरिंग में बसता है। दो कविता संग्रह सृजनपथ और समकालीन सप्तक में इनकी कविता के ताप को महसूसा जा सकता है।मराठी में लयवलये काव्य संग्रह में कुछ अन्य कवियों के साथ इन्हें भी स्थान मिला है। दर्जनों नाटकों में अभिनय और निर्देशन के लिए सराहना मिली तो कुछ के लिए पुरस्कृत भी हुए। प्रमुख नाटक पुरूष, तिकड़म तिकड़म धा, सूखे दरख्त, सविता दामोदर परांजपे, डॉ आप भी! आदि। अनेक फिल्मों, वेबसीरीज, दूरदर्शन के नाटकों में काम। लापता लेडीज़ में स्टेशन मास्टर के अपने किरदार के लिए काफी सराहे गये।

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