अरुण अर्णव खरे, arun arnaw khare
अरुण अर्णव खरे की कलम से....

व्यंग्य :- उनके चाहने वाले

            चाहना मनुष्य का नैसर्गिक गुण है। मनुष्य योनि में जन्म लेते ही व्यक्ति माँ-बाप, भाई-बहिन, प्रकृति, मौसम, नदी, पहाड़ों, चाँद-तारों से लेकर ख़ूबसूरत नज़ारों, ख़ूबसूरत चेहरों और पता नहीं किस-किस को चाहने लगता है। चाहना उसे सिखाना नहीं पड़ता। कुछ चीज़ों और लोगों को चाहना उसे विरासत में मिलता है और कुछ को चाहना वह स्वयं सीख जाता है। कुछ को चाहकर उसे सुरक्षा मिलती है, अपनत्व मिलता है और कुछ को चाहकर आनंद की अनुभूति। इस हिसाब से देखें तो चाहने वाले केवल एक ही प्रकार के हो सकते हैं। उनको अलग-अलग कैटेगरी में नहीं बाँटा जा सकता, लेकिन यहाँ हम जिन चाहने वालों की चर्चा करने जा रहे हैं उन्होंने इस मिथक को तोड़ दिया है। वे केवल उनके चाहने वाले हैं। वे एकतरफ़ा उन्हें ही चाहते हैं। इन चाहने वालों को कोल्हू के बैल अथवा ताँगे के घोड़े के समान केवल सीधा देखना आता है। इन्हें दाएँ-बाएँ देखकर दूसरी चीज़ों को चाहने की इजाज़त नहीं है। इन्हें केवल उन्हें ही चाहना सिखाया गया है। इसके लिए इन्हें बाक़ायदा प्रशिक्षित किया गया है।

चाहने वाले बड़े भावुक प्रकृति के होते हैं पर ये उनके चाहने वाले हैं, सबसे अलग और ख़ास तरह से निर्मित। किसी बात पर भावुक हो जाना इनके मिज़ाज में नहीं है। भावुकता के तमाम कारकों को इनके मस्तिष्क से बड़े प्रयास से निष्क्रिय बनाया गया है। अब ये बलात्कार, लिंचिंग और बुलडोज़र जैसी बातों पर उनकी ही तरह भावुक नहीं होते, चुप्पी साधे रहते हैं और जो इनके विरुद्ध आवाज़ उठाते हैं उन्हें राष्ट्रविरोधी सिद्ध करने में जुटे रहते हैं। इन्हें भोर की पहली किरण के साथ ही हर दिन एक नया टास्क मिल जाता है और देर रात्रि तक ये करोड़ों लोगों के इनबॉक्स में ज़बर्दस्ती घुसपैठ कर उसे रोपित कर देते हैं। ये यह सब किसी को नीचा गिराने या ऊपर उठाने के लिए नहीं करते अपितु अपनी चाहत का प्रमाण देने के लिए करते हैं।

चाहने वाले बड़ी कोमल प्रवृत्ति के होते हैं पर ये उनके चाहने वाले हैं, आम चाहने वालों से एकदम उलट। इनके दिल में कोमलता को पल्लवित करने वाले स्थान तक रक्त पहुँचाने वाली नलिका को अवरुद्ध कर दिया गया है, जिससे वह स्थान पूरी तरह से बंजर और कड़क हो गया है। इसी वजह से ये जेल से छूटे हत्या और बलात्कार के दोषियों का वीरोचित स्वागत कर पाते हैं, उनका प्रशस्तिवाचन कर पाते हैं।

चाहने वाले बड़े दिल के होते हैं। वे किसी की बुराई नहीं करते, दिल खोलकर सबकी प्रशंसा करते हैं। उनके चाहने वालों के पास भी दिल होता है। बड़ा तो नहीं ही होता है यह कई बार ये सिद्ध कर चुके हैं। इनका दिल किसी की प्रशंसा नहीं करता। इनका दिल केवल इन्हें ज़िंदा रखने का इकलौता काम करता है। चाहने वाले त्याग और समर्पण के पर्याय होते हैं। आश्चर्यजनक रूप से उनके चाहने वाले भी इन गुणों से लबरेज़ हैं। ये चाहने वाले उनके प्रति पूरी तरह समर्पित हैं। प्रेम, सहिष्णुता, ममता, सद्भाव और विश्वास का त्याग, ये बहुत पहले कर चुके हैं। चाहने वाले निस्वार्थ होते हैं। उनके चाहने वाले भी निस्वार्थ हैं। सोशल मीडिया के अपने हर अकाउंट की डीपी में इन चाहने वालों ने अपनी फोटो के स्थान पर उनकी फोटो लगा रखी है।

आजकल उनके चाहने वाले परेशान हैं। चाहने वालों को आभास होने लगा है कि वे इस समय परेशान चल रहे हैं। चाहने वालों ने पिछले दिनों कई बार उनकी डायलॉग डिलीवरी में टाइमिंग को मिसमैच होते देखा है। चाहने वालों को पता है कि वे किस बात से परेशान हैं, लेकिन चाहने वाले कुछ नहीं कर सकते क्योंकि उन्हें केवल चाहना ही आता है, उन्हें केवल चाहना ही सिखाया गया है और उन्हें केवल चाहते रहने के लिए विवश बनाया गया है। अपने चाहने वालों पर उनने निवेश भी भरपूर किया है। चाहने वालों को पता ही नहीं है कि कब उनके ब्रेन के नैसर्गिक साफ्टवेयर से ऐसी सारी कुकीज़ और सपोर्टिंग फ़ाइल्स डिलीट की जा चुकी हैं, जो चाहने के अलावा कोई दूसरा काम करने में सहायक हो सकती थीं। उनके चाहने वालों का कायाकल्प हो चुका है। अब वे इंसान नहीं रहे, वे एक डिजिटल, सुविधाजनक और स्वार्थ-नियंत्रित इकाई में बदल चुके हैं।

अरुण अर्णव खरे, arun arnaw khare

अरुण अर्णव खरे

अभियांत्रिकीय क्षेत्र में वरिष्ठ पद से सेवानिवृत्त। कथा एवं व्यंग्य साहित्य में चर्चित हस्ताक्षर। बीस से अधिक प्रतिष्ठित सम्मान प्राप्त। अपने माता-पिता की स्मृति में 'शांति-गया' साहित्यिक सम्मान समारोह आयोजित करते हैं। दो उपन्यास, पांच कथा संग्रह, चार व्यंग्य संग्रह और दो काव्य संग्रह के साथ ही अनेक समवेत संकलनों में शामिल तथा देश भर में पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर प्रकाशन। खेलों से संबंधित लेखन में विशेष रुचि, इसकी भी नौ पुस्तकें आपके नाम। दो ​विश्व हिंदी सम्मेलनों में शिरकत के साथ ही मॉरिशस में 'हिंदी की सांस्कृतिक विरासत' विषय पर व्याख्यान भी।

2 comments on “व्यंग्य :- उनके चाहने वाले

  1. उन्हें केवल चाहना ही सिखाया गया है,,,

    नैसर्गिक सॉफ्टवेयर!!!
    क्या कहने
    !
    बहुत ख़ूब!

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