ग़ज़ल तब

ग़ज़ल तब रह-रवी है न रहनुमाई है आज दौर-ए-शिकस्ता-पाई है अक़्ल ले आयी ज़िंदगी को कहाँ इश्क़-ए-नादाँ तिरी दुहाई है है उफ़ुक़-दर-उफ़ुक़ रह-ए-हस्ती हर रसाई में ना-रसाई है हो...

सैर कर ग़ाफ़िल…: एक कलाकार की यूरोप डायरी-5

(शब्द और रंग, दोनों दुनियाओं में बेहतरीन दख़ल रखने वाली प्रवेश सोनी हाल ही, क़रीब महीने भर की यूरोप यात्रा से लौटी हैं। कवि और कलाकार की नज़र से,...