गीत अब हमें स्वार्थ के लिएतोड़कर ऐसा बाँटा हैऐन पसलियों बीचधँसा-सेही का काँटा है जान गये एका की ताकत,इसीलिए है तोड़ाधर्म-जाति का मुद्दा, तिस परधन का सख्त हथौड़ाचिड़ियों के...
ग़ज़ल तब कितने जुमले हैं कि जो रू-पोश हैं यारों के बीचहम भी मुजरिम की तरह ख़ामोश हैं यारों के बीच क्या कहें किसने बहारों को ख़िज़ाँ-सामाँ कियादेखने में...
डिप्टी नज़ीर अहमद का तौबतुन्नसूह “मुझको तुम्हारे माँ-बाप होने से इनकार नहीं। गुफ़्तगू इस बात में है कि तुमको मेरे अफ़आल में ज़बरदस्ती दख़ल देने का इख़्तियार है...