dahan novel by hariyash rai, हरियश राय का उपन्यास दहन
पाक्षिक ब्लॉग नमिता सिंह की कलम से....

वर्तमान की विडंबना का आईना है उपन्यास 'दहन'

             प्रतिष्ठित कथाकार हरियश राय का उपन्यास ‘दहन’ पढ़ा, तो एक भाव जो मन में आया वो था कि वर्तमान के राजनीतिक माहौल में जो अंध धार्मिकता और कर्मकांडों का ज़ोर है, उसे कथावस्तु बनाकर सचमुच लेखक ने साहस का काम किया है। इसके साथ राजनीतिक-व्यापारिक हितों का गठजोड़ भी आज की सच्चाई है। सत्य की खोज में प्राणों को दांव पर लगाकर भी हमारे वैज्ञानिकों ने विश्व समाज को अप्रतिम ऊँचाइयों तक पहुंचाया। मानव समाज आज विज्ञान और तकनीक द्वारा प्रदत्त सुख सुविधाओं का उपभोग कर रहा है। दूसरी ओर, धर्म के नाम पर फैले पाखंड, रीति-रिवाज और कर्मकांडों के ज़रिये एक बार फिर मनुष्य के दिमाग़ों को ग़ुलाम बनाने का प्रयास किया जा रहा है। सत्ता की राजनीति ऐसे ही ग़ुलाम ज़ेहनों के माध्यम से हो सकती है, जहाँ ईश्वरीय सत्ता के भय को स्वार्थ साधन के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इस सच्चाई को वर्तमान माहौल में विषय बनाकर लेखक ने पाठकों के सामने एक रोचक कथावस्तु के रूप में प्रस्तुत किया है।

उपन्यास के केंद्र में सौम्या त्रिवेदी है, उसका परिवार है और मुख्य कार्यस्थल जोतपुर गाँव की शहर से लगने वाली सीमा पर स्थित स्कूल है। गाँव पंचायत की ज़मीन पर बना यह स्कूल अब सरकारी है और शिक्षा निदेशालय द्वारा संचालित होता है। इसके बावजूद गाँव के दबंग नेता वहाँ अपनी भैंसें तो बांधते ही हैं। बच्चों को अच्छी शिक्षा के लिए समर्पित सौम्या टीचर है वहाँ और सीमा चहल प्रिंसिपल। सौम्या की मित्र रमा, ज़माने की हवा के साथ चलने वाली इतिहास की टीचर नीलिमा और आधुनिक सोच का अध्यापक प्रमुख पात्रों में हैं।शिक्षा निदेशालय का विक्रम सेठ निदेशक है। धार्मिक कर्मकांड और धर्म आधारित पाठ्यक्रम स्कूलों में लगवाकर वह सत्ता वर्ग का चहेता अफ़सर है। उसकी मुख्य दिलचस्पी ज़मीन की ख़रीद-फ़रोख़्त के कारोबार में अधिक रहती है।

dahan novel by hariyash rai, हरियश राय का उपन्यास दहन

सौम्या आधुनिक सोच की स्त्री है, जो अपने परिवार, स्कूल और बच्चों के हित व उनकी शिक्षा के लिए समर्पित है। इसीलिए स्कूल के कामों में प्रिसिंपल सीमा चहल उसकी मदद लेती रहती हैं। प्रशासनिक काम उसी के ज़िम्मे रहते हैं। सौम्या ने भास्कर से प्रेम विवाह किया। भास्कर त्रिवेदी परंपरागत धार्मिक माहौल वाले परिवार से और सौम्या विपिन गोयल और लता गोयल की पुत्री। भास्कर सरकारी अफ़सर और सौम्या जोतपुर गाँव में टीचर। भास्कर का परिवार बेहद कर्मकांडी। सारे व्रत-उपवास, अनुष्ठान वाला घर। उसके पिता घरों में पूजा-पाठ के अलावा सभाओं में भागवत कथा सुनाने भी जाते हैं और ख़ूब पैसे कमाते हैं। पिता बलराज त्रिवेदी रिटायरमेंट के बाद केवल पंडित त्रिवेदी बन गये हैं। दिलचस्प है कि वह आर्मी में कर्नल पद से रिटायर हुए। वहाँ अनिश्चितता के माहौल में ईश्वर के प्रति अधिक आस्थावान हो गये। अब पूर्णकालिक पुरोहित बनकर माता का जागरण, अखंड पाठ जैसे अनुष्ठान कराते हैं। मंदिर में बैठकर जन्मकुंडली मिलाना, ग्रह शांति के उपाय सुझाने जैसे कामों से ख़ूब पैसा कमा रहे हैं।

भास्कर त्रिवेदी विवाह से पहले आधुनिक सोच के प्रगतिशील विचारों के दिखायी देते थे। वे सौम्या को विश्वास दिलाने में सफल हो गये थे कि उनके पारिवारिक कर्मकांडी माहौल से उनका कोई लेना-देना नहीं है लेकिन शादी के बाद भास्कर भी उसी माहौल का हिस्सा दिखायी देते हैं। सौम्या के घर वालों को शादी से इसीलिए ऐतराज़ नहीं था कि दहेज का पैसा बचेगा। सौम्या को निरंतर पारिवारिक टकराव और वातावरण से अलग रखना बहुत मुश्किल लगता है और परिवार में शांति बनाये रखने के प्रयास में वह हमेशा तनावग्रस्त रहती है।

उपन्यास का दूसरा केंद्र बिन्दु है शिक्षा के क्षेत्र में भ्रष्टाचार, जो आज के समय का यथार्थ है। विक्रम सेठ सरकारी अनुदान राशि का दुरुपयोग करता है तथा अपने पद और संबंधों का इस्तेमाल रियल एस्टेट व्यापार के काम में करता है। पाठ्यक्रमों में सांप्रदायिक आधार पर होने वाले बदलाव भी आज की सच्चाई है। इससे भी आगे बढ़कर विक्रम सेठ ने स्कूलों में हर सोमवार को हवन कराना अनिवार्य कर दिया है, जिसका सौम्या और विजय माही विरोध करते हैं। बारहवीं कक्षा के विद्यार्थी हर वर्ष किसी पहाड़ी स्थान पर भ्रमण के लिए जाते थे। अब डायरेक्टर साहब के निर्देश पर उन्हें एक मठ में भेजा जाता है। ये सभी प्रसंग आज स्कूलों में शिक्षा के स्तर और बन रही नयी व्यवस्था को दिखाते हैं।

सामाजिक बदलाव की प्रतिध्वनियाँ साहित्यिक कृतियों के माध्यम से ही धरोहर के रूप में सुरक्षित रह सकती हैं ताकि भविष्य में उस कालखंड का सही आंकलन हो सके।

उपन्यास के अंत में निरंतर तनावग्रस्त और विरोध झेलती, घर-परिवार के संवेदनहीन वातावरण में घुटती सौम्या कैंसरग्रस्त होकर बिस्तर पर है। उसके परिवारजन उसके पिछले पापों का फल कहकर तसल्ली कर लेते हैं और महामृत्युंजय मंत्र के पाठ की तैयारी कर रहे होते हैं। उसकी कामना है कि उसकी बेटियाँ ईशा और इला आत्मविश्वास के साथ और कुंठाओं के दहन से दूर जीवन जिएंगी।

संवेदनहीन, पाखंड भरे परिवार के बीच सौम्या को अगर कैंसर नहीं तो कुछ और होता.. दहन उसकी नियति थी। लेखक हरियश राय ने बदलते सामाजिक वातावरण को उपन्यास में प्रभावशाली कथ्य के साथ प्रस्तुत किया है। सरल, प्रवाहमय भाषा इसे पठनीय बनाती है।

नमिता सिंह

नमिता सिंह

लखनऊ में पली बढ़ी।साहित्य, समाज और राजनीति की सोच यहीं से शुरू हुई तो विस्तार मिला अलीगढ़ जो जीवन की कर्मभूमि बनी।पी एच डी की थीसिस रसायन शास्त्र को समर्पित हुई तो आठ कहानी संग्रह ,दो उपन्यास के अलावा एक समीक्षा-आलोचना,एक साक्षात्कार संग्रह और एक स्त्री विमर्श की पुस्तक 'स्त्री-प्रश्न '।तीन संपादित पुस्तकें।पिछले वर्ष संस्मरणों की पुस्तक 'समय शिला पर'।कुछ हिन्दी साहित्य के शोध कर्ताओं को मेरे कथा साहित्य में कुछ ठीक लगा तो तीन पुस्तकें रचनाकर्म पर भीहैं।'फ़सादात की लायानियत -नमिता सिंह की कहानियाँ'-उर्दू में अनुवादित संग्रह। अंग्रेज़ी सहित अनेक भारतीय भाषाओं में कहानियों के अनुवाद। 'कर्फ्यू 'कहानी पर दूरदर्शन द्वारा टेलीफिल्म।

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