
- August 21, 2025
- आब-ओ-हवा
- 30
पुस्तक परिचय: बकुला घासवाला की कलम से....
हिम्मत-हौसले के धागों से बुनी स्त्रियों की कहानियां
दिव्याजी का नाम मेरे लिए आदरणीय है। जब ‘ख़ुदी को कर बुलंद-एकल स्त्रियों का ज़िन्दगीनामा’ सामने आता है, तो मुझे दिव्याजी की बुलंदी दिखती है। वैसे मैं उनसे आज तक रू-ब-रू हो नहीं पायी फिर भी उनकी लेखनी और आवाज़ इतनी अपनी लगती है कि मैं उन्हें बहुत पसंद करती हूँ और उनकी हर कोशिश को सलाम करती हूँ।

इस पुस्तक के नाम में मुझे ‘ज़िंदगीनामा’ शब्द इतना अच्छा लगा कि मैंने तुरंत पढ़ना शुरू ही कर दिया। पढ़ते-पढ़ते मुझे प्रेमचंद जी की ‘निर्मला’ और ‘मुनाजाते बेवा’ (इसके सर्जक का नाम याद नहीं आता है) की याद आती रही।
इस पुस्तक में तेरह सच्ची जीवनकथाएं संकलित की गयी हैं। प्रथम ज़िंदगीनामा है, संतोषजी का। अग्निपथ पर चलते-चलते वह ख़ुद आग बन गयी हैं, फिर भी उनकी शीतल हूंफ अकबंध है, जो पाठकों को अपनापन महसूस करवाती है। दूसरा प्रकरण फ्लेवियाजी की ओर से दिव्या जैन जी ने लिखा है। पहले भी गुजराती में फ्लेविया की जीवनी ‘कथा मारी तमारी सौनी, खंडेर जीवननी पुनः:रचना नी’ पुस्तिका स्वरूप में आ चुकी है। तब हम इसका परिचय बहनों के सामने प्रस्तुत करते थे और उनकी हिम्मत बढ़ जाती थी। आज आपके कार्यक्षेत्र में सब ‘फ्लेविया और मजलिस’ को पहचानते हैं।
डॉ. दीप्ति गुप्ताजी की कहानी हमें अहसास दिलवाती है कि ऐसा मानना ज़्यादती है कि औरत मर्द के साये और सुरक्षा बिना ख़ुश नहीं रह सकती। सुषमा चौहान ‘किरन’ राष्ट्रपति एवार्ड विजेता की कहानी पद्मजा शर्मा ने प्रस्तुत की है। एकलनारी की हिम्मत की मिसाल हैं हमारी सुषमाजी! इनकी सलाह है कि अपने बुरे दिनों में बच्चों को कभी रिश्तेदारों के वहाँ छोड़ना नहीं चाहिए! मैं इनके साथ सौ फ़ीसदी सहमत हूँ!
प्रीति शांत की लिखी कहानी अन्नपूर्णा की है! अन्नपूर्णा प्रजापतिजी ‘सेवा’ संस्था की वजह से वैतरणी पार करके ‘सेवावाली दीदी’ का सन्मान पाती रही हैं। इन्होंने अपनी भांजी को गोद लेकर बड़ा किया। डो. नीरा नाहटाजी का निबंध ‘अडधी’ आलम की सच्चाई को बड़े तर्कसंगत रूप में समझाता है। इनका केन्द्रवर्ती विधान है, ‘परिवार रक्षक भी है और भक्षक भी!’ रेखा कस्तवारजी का निबंध भी अकेलेपन की गहराइयों में जाकर सच्चाई जताता है।
मृदुला मिश्राजी द्वारा लिखी सच्ची कहानी की मृणालजी का मानना है कि उन्होंने ख़ुद को ज़िंदादिली से जीना सीख लिया है।
सत्यवती मौर्य ने टीवी एवम् नाट्यक्षेत्र की अभिनेत्री मीनाक्षी ठाकुर की जीवनी की लिखावट में उनकी दर्दनाक कठिनाइयों, संघर्ष, सफलता और उपलब्धि को समाविष्ट किया है, जो जानेमाने कलाकार दिनेश ठाकुरजी की पत्नी थीं और बाद में उन्होंने तलाक़ लिया था। चंदाजी, अपराजिताजी, मंजुलाजी, सुशीलाजी, लताजी के अकेलेपन, संघर्ष, अच्छे-बुरे अनुभव की बातें दिव्याजी, मृदुलाजी, शिप्राजी, सीमाजी, अनीताजी ने लिखी हैं।
इन सभी और दूसरी सात वैसे तेरह सच्च्ची कहानियों का प्रधान सुर यही है कि समाज अकेली औरतों को चैन से जीने नहीं देता! तलाक़शुदा महिलाओं का तो जीना ही मुश्किल हो जाता है। बच्चे हों तो और भी ज़्यादा मुश्किल! पत्नी को पति से आगे निकलना ही नहीं चाहिए, पहले अच्छा रूप दिखाकर बाद में दहेज, नौकरी, घरकाम, खर्च जैसी बातों पर पत्नी तो प्रताड़ित करने की सहजता तो मानो समाज की स्वीकृत रीति-नीति है! स्त्रियों का सम्मान, आत्मसम्मान, आत्मविश्वास सब कैसे कुंठित कर देना यह तो पितृसत्तात्मक मानसिकता का दायें हाथ का खेल है। ‘मौन के संस्कार’ ने स्त्रियों को इतना जकड़ लिया कि वे ख़ुद को समझ सकें इतनी हिम्मत भी जुटा नहीं पाती लेकिन जब समझ जायें और अपने आप पर विश्वास रख कर क़ाबिल हो जायें तो वही लोग सम्मान भी देते हैं, जिन्हें परिवार, मित्र, समाज, क़ायदे एवं संस्थाएं सहयोग देते हैं। वह थोड़े से हौसले से ख़ुद को बुलंद कर सकती है। इससे अंतस्तल में स्वतंत्रता की अनुभूति भी होती है।
मैं इन कहानियों को बेहतर समझ पायी, उसकी वजह यह है कि मैंने 35-40 साल तक
स्त्रियों पर हिंसा की समस्या जैसे मुद्दों पर कार्य किया है और लिखा भी है। दिव्याजी और सभी निडर, स्वायत्त, आत्मविश्वासी और ज़िंदादिल एकल नारी को सलाम।

बकुला घासवाला
कर्मशील-लेखिका-अनुवादक-कवि। क़रीब आधा दर्जन किताबें लेखन-सहलेखन में प्रकाशित हैं। गुजराती साहित्य परिषद द्वारा 2005 का भगिनी निवेदिता अवार्ड (प्रथम)। मृणालिनी साराभाई की अंग्रेज़ी आत्मकथा ‘द वॉइस आफ़ द हार्ट' का गुजराती अनुवाद 'अंतर्नाद-एक नृत्यांगना जीवन’ को साहित्य अकादमी, दिल्ली द्वारा 2019 में पुरस्कृत किया गया। हाल ही ऑडियो नॉवेल ‘सात पेटी ना संबंधे’ जिज्ञेश पटेल की आवाज़ में प्रसारित हुई। आकाशवाणी से प्रसारित। वलसाड की 'अस्तित्व' संस्था की स्थापना व सक्रियता में विशिष्ट योगदान। समाज-संस्कृतिसेवी।
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खुदी को कर बुलंद,पुस्तक की बहुत ही सुन्दर और सारगर्भित समीक्षा की है बकुला जी ने।लेखक और समीक्षक आप दोनों को हार्दिक बधाई।
बेहतरीन लिखा ज़िंदगी का सच।
जरूरी किताब । पढ़ने की इच्छा जगा दी ।बधाई ।
कभी कभी लिखने वाले को पता नहीं होता कि वह क्या लिख गया ।इसका अहसास पाठक और आलोचक करवाते हैं ।दिव्या जी ने जो सुंदर काम स्त्रियों के लिए किया और करवाया है वह सराहनीय है।और बकुला जी ने किताब को ध्यान से ,गहराई से पढ़ा है।दिव्या जी को धन्यवाद कि मुझसे लिखवाया।
दिव्या जैन की एकल स्त्रियों के आलेखों की किताब
जिंदगीनामा पर बकुला जी की समीक्षा पढ़कर लगा कि बहुत से लोग हैं दुनिया में जो हमारी सोच से मेल रखते हैं ।बकुला जी ने संकलित सभी आलेखों को गहराई से देखा पढ़ा है और अपनी राय उन पर दी है ।पाठक और समीक्षक ही बताते हैं आखिर कि किताब कैसी है ।बकुला जी ने किताब और संपादक दिव्या जी जैन के काम को सराहा है ।थोड़ी सी सराहना हम भी ले लेते हैं या मिली है।धन्यवाद दिव्या जी इस किताब का हिस्सा बनाने के लिए ।
दिव्या जी ने बहुत मेहनत से यह काम किया।प्रिय पद्मजा ने मुझे इससे जोड़ा। बकुला जी ने समीक्षा कर एकल स्त्रियों के संघर्ष को जन जन तक पहुंचाया। आप सभी का धन्यवाद
वरिष्ठ पत्रकार दिव्या जैन जी द्वारा सम्पादित पुस्तक ‘खुदी को कर बुलंद एकल स्त्रियों का जिदंगीनामा’के उपर बकुला जी ने जो सटीक समीक्षा की है,वह सराहनीय है। उस पुस्तक में संग्रहित तेरह जिंदगियों का जिंदगीनामा सचमुच अद्भुत है। अंधकार में पड़ी इन स्त्रियों ने अपने अदभ्य साहस और संघर्ष से बुलंदियों को छूकर समाज के सामने स्वंय सिद्धा बनकर खड़ी हुई हैं तथा अन्य ऐसी नारियों की प्रेरणास्रोत बनी है। मेरे लिए गर्व की बात यह है कि दिव्या जी मेरी बहुत अच्छी मित्र हैं।
कहते हैं न कि,’हीरे की परख एक जौहरी ही कर सकता है’बिल्कुल सही है।इस पुस्तक का मुल्यांकन बकुला जी जैसी साहित्य प्रेमी ने किया है। बहुत-बहुत धन्यवाद बकुला जी आपको।
दिव्या जी की कलम को प्रणाम करती हूँ।
मृदुला मिश्रा।
‘खुदी को कर बुलंद एकल स्त्रियों का जिंदगीनामा’वरिष्ठ पत्रकार दिव्या जैन जी द्वारा सम्पादित एक ऐसी पुस्तक है,जिसमें तेरह नारियों की व्यथा-कथा संग्रहित हैं।सर्वोत्तम बात यह है कि इन स्त्रियों ने हिम्मत हारने की बजाय उस परिस्थिति को अपना हथियार बनाकर कठिन संघर्षरत होकर अपने को बुलंदियों पर पहुंचा दिया। बकुला जी ने बहुत ही सटीक आकलन इस पुस्तक का किया है।बहुत ही गहनता के साथ इनका अध्ययन कर अपनी बातें रखी है।सचमुच यह प्रेरणास्रोत है अन्य नारियों के लिए,इसे कोर्स की किताबों में स्थान मिलना चाहिए।
मेरे लिए गर्व की बात है कि दिव्या जी मेरी अच्छी मित्र हैं।बकुला जी को बहुत-बहुत धन्यवाद।
मृदुला मिश्रा।
बहुत सुंदर आकलन बकुला जी आपका।
वाह-वाह
बकुला जी,बहुत खूब
Mananiya Bakulaben amara juna tatha respwcted Vadil ne Naman
karu chhu.
दिव्या जी ने लम्बे समय तक जनसत्ता में स्त्री संघर्ष को लेकर एक नियमित स्तम्भ लिखा जो बेहद चर्चित रहा। फिर स्त्रियों पर केंद्रित पत्रिका अंतरंग संगिनी 18 वर्षों तक अकेले अपने दम पर निकाली। दिव्या जी का पूरा जीवन ही महिलाओं के पक्ष को उठाने में खप गया। वे आज भी 75 की उम्र में उसी समर्पण और जूनून से लगी हैं। ख़ुदी को कर बुलंद उसी का अगला पड़ाव है। जिसमें उन महिलाओं की प्रेरणादायक कथा है। जिन्होंने तमाम विपरीत परिस्थितियों को धता बताते हुए अदम्य जिजीविषा का परिचय देते हुए अपना मुकाम बनाया। मैं उनकी इस पुस्तक की यात्रा का साक्षी रहा हूँ। दिव्या जी इसका दूसरा भाग भी लाने वाली हैं। उस पर बड़ी शिद्द्त से काम कर रही हैं। उन्हें अनेक शुभकामनायें, वे स्वस्थ रहें और अपनी पत्रकारिता व लेखन से महिला सशक्तिकरण की मशाल जलाये रखें।
दिव्या जी की पुस्तक में संकलित तेरह कहानियां हर उस स्त्री की दास्तान है जिसने अकेले अपने दम पर अपनी पहचान बनाई है। हालांकि ये सफर ज़ाहिर है कि आसान तो कतई न रहा होगा क्योंकि हमारा समाज एकाकी स्त्रियों के लिए कभी भी उदार नहीं रहा है। फिर भी कभी अपनों से, कभी हालात से, कभी समाज से तो कभी अपने आपसे भी लड़कर इन सबने अपनी पहचान बनाई।
उनके जज्बे को दिव्या जी ने एक किताब का रूप दिया और मुझे भी इसका हिस्सा बनने का अवसर दिया। इसके लिए उनका अभिनंदन।
डा दिव्या जैन जी ना केवल अपनी लेखनी बल्कि लेखनी से पहले लिए गए साक्षात्कार रूपी तथ्यों में पूरा एक युग की सैर करा देती हैं। इस उम्र के पड़ाव पर उनके अथक प्रयासों और परिश्रम से बहुत उर्जा मिलती है। आपका बहुत बहुत धन्यवाद। एकल जीवन के दर्द को समझना और प्रस्तुत करना दोनों ही कठिन कार्य है। आपको साधुवाद।
बकुला बहन आप को भी बहुत बधाई , आपने दिव्या जी की किताब की बहुत ही अच्छी समीक्षा की है, बहुत विस्तार से लिखा है, जो बहुत कम लोग करते हैं।
“ख़ुदी को कर बुलंद – एकल स्त्रियों का ज़िन्दगीनामा”(दिव्या जैन)
यह खूबसूरत पुस्तक तेरह सच्ची कहानियों का संकलन है, जिसकी समीक्षा करते हुए, बकुल घासवाला ने
अलग-अलग एकल स्त्रियों के संघर्ष, साहस और आत्मनिर्भरता को समग्रता से दर्ज किया है |
इस सराहनीय समीक्षा में हिम्मत-हौसले के धागों से बुनी कहानियों में यह तथ्य बखूबी उभर कर आया है कि तलाक़, अकेलेपन और सामाजिक रूढ़ियों के बावजूद स्त्रियाँ अपने दम पर नई राहें बनाती हैं।
समीक्षा में स्पष्ट कहा गया है – “समाज तलाक़शुदा या अकेली स्त्रियों को चैन से जीने नहीं देता, पर जब वही स्त्रियाँ अपने पाँव पर खड़ी होती हैं तो वही समाज उन्हें सम्मान भी देता है।”
अंत में समीक्षक ने दिव्या जैन सहित उन सभी स्त्रियों को सलाम किया है, जिन्होंने आत्मविश्वास और संघर्ष से अपनी पहचान बनाई है।
इस महत्वपूर्ण पुस्तक और उसकी समीक्षा हेतु सखी दिव्या जैन और बकुल जी का अभिनन्दन एवं अनेकानेक बधाइयाँ
नमस्कार सुश्री बकुला घासवालाजी
अन्य पाठकों से जुदा लेखिका संपादक सुश्री दिव्या जैन वह उनकी स्त्री विमर्श की पत्रिका संगिनी से मेरा परिचय गोवा जेल में अपनी एनडीपीस एक्ट सजा काटते हुई पत्रिका मुझे किसी साहित्यकार ने अवदान की थी उसे पढ़कर मैंने संपादक को अपना पाठकीय पत्र लिखा उसके बाद मुझे नियमित रूप से निशुल्क संगिनी मिलती रही पत्रिका की वैचारिक सामग्री ने मेरी और साथी बंदियो की खुद को स्त्री से श्रेष्ठ और स्त्री को दोयम दर्जे की समझने की बीमार मानसिकता पर प्रहार करके सोच विचार की नई जमीन दी
उनकी पुस्तक खुदी को कर बुलंद मे तेरह सच्ची जीवन कथाएं संकलित है जिसकी समीक्षा वरिष्ठ लेखिका अनुवादक कवि सुश्री बकुल घासवाला ने गहराई के साथ अध्ययन करके हमें कथाओं के किरदारों की आत्मा से रूबरू कराया है डॉक्टर दीप्ति गुप्ता मीनाक्षी ठाकुर प्रीति शांत सत्यवती मौर्य की कहानी इस बात को साबित करती हैं कि समाज अकेली औरत को जीने नहीं देता पितृसत्ता समाज की मानसिकता तमाम विज्ञान और शिक्षा के प्रचार प्रसार के बावजूद आज भी मौजूद है भले ही उसके रूप बदल गए हो उन्होंने मौन संस्कार का उदाहरण देकर हकीकत दिखाई है इसके लिए यह बात शिद्दत से महसूस होती है की एक मुक्ति कामी नारी मे किसी भी संघर्ष के लिए वैज्ञानिक चेतना का विकास पहली शर्त है तलाकशुदा महिलाओं के लिए समाज में अपना जीवन जीना कितना दुष्कर होता है इस बात का एहसास कराया है इसी हकीकत को हम समाज में अपने आसपास देखते हैं एकल नारी संघर्ष करते हुए अपनी पहचान के साथ काम करके जीवन जीना चाहती है तो उसके चरित्र पर लांछन लगाया जाता है मीनाक्षी ठाकुर जैसी शिक्षित जागरूक महिला को भी मानसिक प्रताड़ना झेलनी पड़ती है महत्वपूर्ण समीक्षा के लिए आभार आपका
बहुत बहुत धन्यवाद बकुला जी , खुदी को कर बुलंद पुस्तक की समीक्षा के लिए , दिव्या जी के इस पुस्तक से इतनी हिम्मत तो अवश्य मिलती है कि स्त्री अब अबला नही है और न किसी पुरुष की मोहताज ।
सब के पास समान आंखे हैं लेकिन सब के पास समान दृष्टिकोण नहीं ,
बस यही बात इंसान को इंसान से अलग करती है..!
आपकी किताब की समालोचना (review) किताब को पढ़ने के उत्साहित तो करती ही है साथ ही दिव्या जैन की मेहनत को सार्थक करती है। आपको ह्रदय से अभिवादन एवं धन्यवाद।
दिव्या जी की कलम मानो स्त्रियों की आवाज़ है. जब कभी उनकी कोई भी पुस्तक प्रकाशित होती है, उसके पीछे उनका गहन शोध, अध्ध्यन और दूरगामी परिणाम के तत्व निहित रहते हैं. इस पुस्तक में उन्होंने जीवंत और जीवटता की उदाहरण एकल स्त्रियों का संघर्ष और सौंदर्य (कैसे समाज में बिन शोर शराबे के अपनी कर्तव्यनिष्ठा से एक सुंदर संसार की रचना किये जाती हैं) यह बखूबी दिखाने में सफ़ल हुई हैं.दिव्या जी एवं तमाम बुलंद स्त्रियों को शिप्रा का कोटिश् नमन, सलाम्!
खुदी को कर बुलंद इतना पुस्तक में बहुत ही मर्मस्पर्शी रचनाएं हैं। हमें झकझोरती भी हैं और हौसला भी देती हैं। बकुला जी ने बहुत ही अच्छी समीक्षा लिखी है। लेखिका दिव्या जैन जी एवं समीक्षक बकुला जी दोनों को साधुवाद।
वरिष्ठ पत्रकार दिव्या जैन द्वारा संपादित पुस्तक ” खुदी को कर बुलंद” (एकल स्त्रियों का जिन्दगी नामा)में दिव्या जी ने एकल स्त्रियों की व्यथा और त्रासदी जन जन तक पहुचाया हैं दिव्या जी ने 13 कहानियों पर बहुत महेनत की और इन पीडित स्त्रियों की समस्याओ को समाज के सामने उजागर किया,यह बहुत.बडी बात है।
उस पुस्तक पर संस्कृति प्रेमी और गुजराती की प्रसिद्ध लेखिका बकुला बहन घासवाला की सटीक और सराहनीय समीक्षा कर मुझे लगा कि मुझे यह पुस्तक पढनी चाहिए।.मैंने.दिव्या जी से पुस्तक मॅगवांई है। उन्हे इसी तरह का काम आगे भी करते रहने के लिँए मेरी शुभकामनांऐ।
धन्यवाद बकुला जी,
दिव्या जैन की पुस्तक ‘ख़ुदी को कर बुलंद .; पर समीक्षा पढ़ी । पुस्तक की समीक्षा, तब ही की जा सकती है, जब आपने उसे शब्द्श: पढ़ा हो, एक-एक पहलू को समझा हो ।
आपके द्वारा की गई टिप्पणी इस बात सबूत है कि आप स्वयं साहित्य सृजन करती ही हैं, दूसरे साहित्यकारों की प्रशंसा भी करती हैं । उच्च साहित्यकार द्वारा की गई प्रशंसा लेखक को नई प्रेरणा देता है, नई ऊर्जा से भर देता है । आभार आपका !
अब हम बात करेंगे इन तेरह कहानियों की । ये कहानियाँ सिर्फ कहानियाँ ही नहीं है, बल्कि आज के परिवेश में, समाज और परिवार द्वारा सताई गई महिलाओं के लिए ज्योति पुंज हैं । नजर दौड़ाएं तो हमारे आस-पास, विशेषत: भारत में ऐसे कई महिलाओं के उदाहरण मिल जाएंगे । मुझे विश्वास है वे इन्हें पढ़ेगी और इनका लाभ उठाएंगी ।
खुशी की बात है, आज … आज समाज या परिवार से तिरस्कृत महिलाएं स्तरीय जीवन व्यतीत कर रहीं हैं । दिव्या जी ने इस पुस्तक में उन्हीं महिलाओं को पिरोया है, जो सारी जीवन की बाधाओं को झेलकर, उन्हें पार कर, गर्व से सिर उठाकर जी रहीं हैं, वे प्रशंसा की पात्र हैं । आज वे बेचारी, लाचार, दया की पात्र महिलाएं नहीं हैं, उनका समाज में मान-सम्मान है । दुनिया समझती है कि वे हमारे रहमो-करम पर हैं । इन कहानियों ने इसे गलत साबित कर दिया । फिर कबीरदासजी ने तो कहा ही है, … एक दिन ऐसा आएगा, मैं रुंधुंगा तोय .. । ये सच हो गया ।
भारतीयों के मन की एक भावना है, वह है दया । इस भावना के वशीभूत वे ‘अरे रे बेचारी, क्या हाल हो गया, क्या करें उसका भाग्य ही ऐसा है, कैसे जिएगी’ बस यही भावनाए व्यक्त करके वे दयालु, धर्मात्मा, समाज सुधारक बन जाते हैं । परंतु अब ये झूठा दंभ टूट चुका है ।
साहित्य समाज का दर्पण है । जो समाज में हो रहा है, वही साहित्य में दिख रहा है । समाज में आज एकल महिलाएं शान से जी रही हैं । ये तेरह महाशक्तियाँ ही तो शक्ति का विराट रूप हैं । आशा है अन्य महिलाएं भी इससे कुछ सीखेंगी और अपने जीवन में सुधार लाएँगी ।
सच्चाई ये है कि महज कोरी कल्पनाएं नहीं है, ये जीवन की सच्चाई है, जिन्हें कागज़ पर उतारा गया है । अगर एक भी महिला उन कहानियों से प्रेरणा ले, अपने जीवन में सुधार ला सके तो लेखक का लेखन सफल हो जाएगा ।
बकुला जी,
आपने जिस तरह से आपने समीक्षा की है, उसे पढ़कर ही, जिन्होनें पुस्तक नहीं पढ़ी है, उनकी भी पुस्तक पढ़ने की इच्छा हो जाएगी l
धन्यवाद बकुला जी, आपकी टिप्पणी बहुत सटीक और सारगर्भित है ।
नारी शक्ति के साहस और धैर्य की ये जीवंत कथाएं बहुत कम पढ़ने जानने को मिलती है l ऐसी कितनी ही अनकही कथाएं होंगी l इन्हें पढ़कर हमे भी महसूस होता है कि आज की नारी कमजोर और अबला नहीं है l बकूलाजी की समीक्षा बहुत ही सटीक और शानदार है l “कुमकुम शाह “
I went through this book review and I found these stories as memoirs of extraordinary will power of ordinary women. Storytellers and compilers deserve a respect and women who led their life in rough n tough times deserve a salute
दिव्या जी ने हमेशा हमारे जैसे पुरुष सत्तात्मक समाज में स्त्रियों की कठिन परिस्थितियों को केंद्र में रख कर काम किया है. उन्होंने पहले “संगिनी “ नामक पत्रिका और फिर “हव्वा की बेटी” नामक पुस्तक के माध्यम से स्त्री की तकलीफ़ों और इस सब के बीच उनके हौसले के साथ रास्ता बनाने के बारे में लिखा. पुस्तक “ खुदी को कर बुलंद “ की समीक्षा पढ़ मन खुश हो गया. बकुला जी ने हर कहानी पर अत्यंत सारगर्भित टिप्पणी की है जिससे किसी भी पाठक के मन में पुस्तक को खरीद कर पढ़ने की जिज्ञासा पैदा हो जाएगी. बहुत बहुत बधाई ☘️☘️
औरतों की हिम्मत को सलाम
यह किताब पढ़ने की हसरत पैदा हो गई
अगस्त महीने में मैंने दिव्या जैन जी द्वारा संपादित, संकलित किताब, खुदी को कर बुलंद (एकल स्त्रियों का जिंदगीनामा) पर एक समीक्षा लिखी थी। इस समीक्षा को भावेश दिलशाद जी ने अपनी वेब साइट आब ओ हवा पर “हिम्मत हौसले के धागों से बुनी स्त्रियों की कहानियां शीर्षक देकर प्रकाशित किया था। इस समीक्षा को करीब 27 लोगों ने पढ़ा और सभी ने मेरी विस्तृत समीक्षा की सराहना की, मुझे बहुत अच्छा लगा। मैं सभी पाठकों की बहुत आभारी हूं। इतने सारे नाम लेना तो संभव नहीं है लेकिन उषा साहू जी, मृदुला जी, तनुश्री जी तथा पवन तिवारी जी ने बहुत अच्छी प्रतिक्रिया लिखी है।
वैसे भी दिव्या जी का नाम मेरे लिए बहुत आदरणीय है। मैं उनसे कभी मिली नहीं हूं लेकिन उनके लेखन से मैं परिचित हूं। वे बहुत अच्छा लिखती हैं। इस किताब के लिए उन्होंने जो मेहनत की है वह स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। एक बार फिर दिव्या जी एवं सभी पाठकों का तहे दिल से आभार।
आदरणीय भावेश दिलशाद जी की वेब साइट आब ओ हवा में 21 अगस्त को मेरी किताब “खुदी को कर बुलंद”(एकल स्त्रियों का जिंदगीनामा) की विस्तृत समीक्षा गुजराती की प्रसिद्ध लेखिका बकुला बेन घासवाला ने लिखी है। इसके लिए मैं उनकी बहुत आभारी हूं। करीब 27 पाठकों ने यह समीक्षा पढ़ी है और इस विस्तृत समीक्षा पर अपनी विस्तृत और बेहतरीन प्रतिक्रियाएं भी लिखी हैं यह बहुत महत्वपूर्ण बात है और मेरे लिए बहुत मायने रखती हैं। मैं सभी पाठकों का शुक्रिया अदा करती हूं।
मेरा यह भी मानना है कि किसी भी लेखक की किताब की समीक्षा पढ़कर पाठक के मन में यदि किताब पढ़ने की इच्छा जगे तो यह उस लेखक या लेखिका की किताब की
सफलता मानी जा सकती है। इसी प्रकार से किताब चर्चा में आती है और लेखक का मनोबल बढ़ता है, इसमें कोई दो राय नहीं है।
एक बार फिर मैं भावेश दिलशाद, बकुला बेन तथा सभी पाठकों का शुक्रिया अदा करती हूं।
दिव्या जैन जी द्वारा संकलित ‘खुदी को कर बुलंद’ पुस्तक की बकुला घासवाला लिखित समीक्षा को वास्तव में पाठकों का उचित प्रतिसाद मिला। आब ओ हवा की ओर से हम समीक्षक, पुस्तक संकलक और पाठकों के आभारी हैं। इस बारे में तीन बातें उल्लेखनीय रूप से करना हैं।
1. हमें हर्ष है कि इस पुस्तक समीक्षा पर संख्या के लिहाज़ से जितने कमेंट प्राप्त हुए, वेबसाइट की किसी भी अन्य स्टोरी पर प्राप्त कमेंट्स की तुलना में सर्वाधिक हैं।
2. जैसा कि बकुला जी और दिव्या जी ने लिखा कि यह समीक्षा 27 पाठकों ने पढ़ी, ऐसा नहीं है। ये कमेंट संख्या है बस। अनेक पाठकों ने पढ़कर कमेंट नहीं किया होगा। यह समीक्षा सैकड़ों पाठकों तक पहुंची है।
3. यह भी सूचना मिली कि प्रसिद्ध लेखक सूर्यबाला जी ने भी इस प्रकाशन, समीक्षा और पुस्तक को सराहा है। तकनीकी कारणों से वह यहां कमेंट नहीं दे सकी हैं। हम सूर्यबाला जी सहित उन तमाम पाठकों के भी शुक्रगुज़ार हैं जो किसी कारणवश पढ़कर भी कमेंट नहीं कर सके हों।
आब ओ हवा साहित्य, कला और सरोकारों का सतत मंच है। पाठकीय, रचनात्मक सहयोग, सद्भाव बनाये रखिए।