
यादें और सपने… गुरु-शिष्या की पेंटिंग्स ने जमाया रंग
चंडीगढ़। पंजाब कला भवन की एम.एस. रंधावा कला दीर्घा में कला गुरु मुकेश और उनकी शिष्या सीरत के चित्रों की प्रदर्शनी ‘गाइडिड हैंड्स’ शीर्षक से चर्चा का केंद्र रही। यहां प्रदर्शित तस्वीरों को देखते ही दर्शक मंत्रमुग्ध दिखायी दिये। 26 सितंबर से 1 अक्टूबर तक चली इस प्रदर्शनी में कलागुरु मुकेश ने जलरंग यानी वॉटर कलर में लाजवाब ढंग से और सधे हाथों से रचे चित्रों में प्रकृति को दर्शाया है, वहीं उनकी शिष्या सीरत ने बहुत सुंदर ढंग से ऑयल कलर में अपने सपनों को उकेरा। उनकी युवा छात्रा ने अपनी अति यथार्थवादी शैली में पाश्चात्य कला से प्रभावित रंगों और प्रस्तुति को अंगीकार करते हुए कैनवास को अपने ढंग से रंगा, जो सहज ही मन को मोह लेता है।
मुकेश बरसों से कला साधना में रत हैं। उनके कामों में सच्चाई और गहराई का आभास होता है। वहीं उनकी शिष्या सीरत, जो लॉकडाउन में शूटिंग का अभ्यास छोड़कर फ़ैशन डिजाइनिंग की तरफ़ अग्रसर हुईं और लंदन से बी.ए. फ़ैशन डिज़ाइनिंग करके लौटी हैं, गुरु के मार्गदर्शन में निरंतर कला अभ्यास से रानी और राजमहल वाले अपने बाल्यकाल वाले सपनों को कैनवास पर सजीव करती प्रतीत होती हैं। मैंने यह प्रदर्शनी अपने कलाकार मित्र हरदेव सिंह के साथ देखी। गुरु शिष्या की कलाकृतियों ने मेरे दिल पर अपनी छाप छोड़ दी, जिसे मैं सभी कलाप्रेमियों तक पहुंचाना चाहूंगा।

मुकेश जी ने अपने चित्रों में यथासंभव वास्तविकता के साथ पहाड़, वनस्पति और देवालयों का सजीव चित्रण किया है। उत्तराखंड के पहाड़ी दृश्य, भूटान के बौद्ध विहार और बनारस के गंगा घाट वाली पेंटिंग्स प्रदर्शनी में विशेष आकर्षण का केंद्र रहीं। इनमें पर्सपेक्टिव के साथ-साथ रंगों और प्रकाश का संतुलित प्राकट्य दर्शक को सीधा उस स्थल से जोड़ देता है। मुझे भी हरिशचंद्र घाट के समीप का क्षेत्र पेंटिंग्स देखते ही स्मरण हो आया। इन तस्वीरों के बहाने पुरानी यादें ताज़ा हो गई।
इधर, सीरत की कलाकृतियाँ ठीक उसके अपने भरे चेहरे जैसी गौर वर्ण वाली रूपसियों का आभास कराती प्रतीत हुईं। साथ-साथ कुछ अन्य पेंटिंग्स में कोलाज का भ्रम भी होता रहा। मोर और तितली चित्रकार के अदृश्य मन में ख़ास स्थान बना चुके हैं, जो दर्शक को भी भाते हैं, ऐसा प्रतीत होता है।
—कलाकार सुभाष अरोड़ा की टिप्पणी
