
- August 13, 2025
- आब-ओ-हवा
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(शब्द और रंग, दोनों दुनियाओं में बेहतरीन दख़ल रखने वाली प्रवेश सोनी हाल ही, क़रीब महीने भर की यूरोप यात्रा से लौटी हैं। कवि और कलाकार की नज़र से, आब-ओ-हवा के लिए अपनी इस यात्रा के कुछ विशिष्ट अनुभव क्रमबद्ध ढंग से वह दर्ज कर रही हैं। उनके शब्दों में ऐसी रवानी है कि शब्दों से ही चित्र दिखने लगते हैं। साप्ताहिक पेशकश के तौर पर हर बुधवार आप यहां पढ़ रहे थे प्रवेश की यूरोप डायरी, यह इसका अंतिम अंक है - संपादक)
प्रवेश सोनी की कलम से....
सैर कर ग़ाफ़िल...: एक कलाकार की यूरोप डायरी-11
2/5/2025
धरती पर स्वर्ग
“धरती पर यदि स्वर्ग है तो कश्मीर में है”, ऐसा कहा जाता है। सच भी है लेकिन जब बात स्विट्ज़रलैंड की करें तो लगता है स्वर्ग यहीं से शुरू होता है और जहां-जहां प्रकृति का अकूत सौंदर्य फैला हुआ है वहां तक इसकी ही शिराएं हैं।
सुबह की दूधिया रोशनी जहां-तहां फैल चुकी थी। मैं अपने समय से जाग गयी। कॉफ़ी लेकर बाहर बाग़ीचे में आयी तो.. फ़िल्मों में देखा, ऐसा सुंदर नज़ारा चारों तरफ़। हरियाली और सुंदर फूलों की क्यारियां। तपस्वी से खड़े पहाड़, बर्फ से अपना शृंगार किये हुए, जिन पर बादल धुएं की तरह उड़ रहे थे। मन हो रहा था इन ख़ूबसूरत वादियों में अकेली लंबी सैर पर निकल जाऊं और फूलों, पहाड़ों, झरनों से ख़ूब बातें करूं। लेकिन सोचकर रह गयी कि बेटियां और पतिजी मेरी इस यायावरी को कुछ और ही नाम दे देते।
कॉफ़ी ख़त्म करके कमरे में आयी और सभी को जगाया। 11 बजे हमें जुंगफ़्राऊ के लिए ट्रेन पकड़नी थी, जिसके लिए हमें इंटरलेकन जाना था। जब तक सब तैयार हुए, मैंने आलू उबालकर पराठे बना लिये। रसोई में बेलन के अलावा खाने पकाने के सभी लग्ज़री सामान थे यानी मॉडर्न किचन। भारतीय सुग्रहिणी ने अपने जुगाड़ू दिमाग़ का इस्तेमाल किया और ग्लास को बेलन बनाकर पराठे बना ही लिये।
खा-पीकर हम बस स्टॉप पर पहुंचे तो बस आने में थोड़ा समय था। हमने इसका उपयोग फ़ोटो शूट करने में किया क्योंकि जहां भी नज़र जाती, ख़ूबसूरत नज़ारे अपनी ओर खींच लेते और फ़ोटो खींचने का मन हो जाता। सुंदर घर उसके साथ ही पालतू पशु के लिए बड़े मैदान में बाड़ लगाकर उनके लिए भी घूमने का स्थान तक कम आकर्षक नहीं था। सब सुनियोजित और स्वच्छ वातावरण।
यहां एक और सुविधा हमें हमारे होम स्टे से मिली थी। एक निजी कोड द्वारा कार्ड दिया गया था, जिससे हम ट्रेन, बस की यात्रा आराम से कर सकते थे। अलग से टिकिट लेने की ज़रूरत नहीं थी।
जुंगफ्राऊ (Jungfrau) स्विट्ज़रलैंड की सबसे प्रसिद्ध और आकर्षक पर्वत चोटियों में से एक है। यह एक शानदार पर्यटन स्थल है, जो अपने बर्फ़ से ढंके पहाड़ों, ग्लेशियरों और अद्भुत रेलवे यात्रा के लिए दुनियाभर के पर्यटकों को आकर्षित करता है।
“Top of Europe” के नाम से प्रसिद्ध, जुंगफ्राऊ यॉख यूरोप का सबसे ऊँचा रेलवे स्टेशन है। जिसकी ऊँचाई: 3,454 मीटर (11,332 फीट) है। इतनी ऊंचाई पर ट्रेन से यात्रा करना डर के साथ रोमांचक भी लग रहा था। लगभग तीन स्टेशन पर ट्रेन बदलकर हम मंज़िल पर पहुंचे। दो ट्रेन तो साधारण थीं, तीसरे स्टेशन क्लेइन शेडिग (Kleine Scheidegg) से हमारी मंज़िल दिख रही थी, जो एकदम खड़ी चढ़ाई पर थी। यहां से ट्रेन पर्वतों के बीच से होकर अद्भुत बर्फ़ीले दृश्यों के साथ जुंगफ्राऊ यॉख तक पहुँचती है।
ट्रेन की विशेषता यह कि यह एक कोगव्हील रेल प्रणाली है, यानी इसमें दाँतेदार पटरी और विशेष इंजन होता है ताकि ढलान पर ट्रेन खिसके नहीं। ट्रेन में बड़ी खुली खिड़कियां होती हैं ताकि आल्प्स के सुंदर दृश्य देखे जा सकें।
मनोरम यात्रा
जुंगफ्राऊ रेलवे लाइन का निर्माण 1912 में हुआ था, और यह इंजीनियरिंग का एक अजूबा माना जाता है। यह क्षेत्र यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल में भी शामिल है। इस रेलवे लाइन की कुल लंबाई लगभग 9.3 किलोमीटर है, जिसमें से लगभग 7 किलोमीटर सुरंग के अंदर है।
ये सुरंगें आइगर और मोंक पहाड़ों के भीतर बनी हैं। निर्माण कार्य बहुत कठिन और ख़तरनाक था क्योंकि पत्थर काटना और बर्फ़ में सुरंग बनाना बेहद जोखिम भरा था। कई मज़दूरों की जान भी इस परियोजना में गयी। जब हम ऊपर चोटी पर पहुंचे और सुरंग में बर्फ़ से बनी गुफाएँ और मूर्तियाँ देख रहे थे, वहीं इस परियोजना की शुरूआत, निर्माण में आयी कठिनाइयों और मजदूरों की मृत्यु के आंकड़े फ़ोटो सहित दर्शाये गये हैं।
कहते हैं न.. कंगूरे की चमक तभी दिखती है जब कई पत्थर नींव का अंधेरा ओढ़ लेते हैं।
ट्रेन को एक जगह थोड़ी देर के लिए रोका गया, जहां से हमने यूरोप का सबसे बड़ा ग्लेशियर Aletsch Glacier देखा। दूध जैसी बर्फ़, कोई छू ले तो दाग़ लग जाये। इसे देखने के स्थान पर कांच की खिड़कियां बनी हुई थीं। दूर से देखकर हम वापिस ट्रेन में आ गये।
ट्रेन की गति बहुत धीमी थी, हमें पॉइंट तक पहुंचने में आधा घंटा लग गया। ऊपर रेस्टोरेंट और उपहारों का बाज़ार था। इतनी ऊंचाई पर भी व्यावसायिकता..! गुफाओं को देखने की शुरूआत हुई जो लंबी सुरंग से होकर जा रही थीं। सुरंग की ऊंचाई लगभग 8 से 9 फीट थी। बर्फ़ से बनी इन सुरंगों में बहुत फिसलन थी और तापमान माइनस में। जो अब तक हम हाथ में लिये थे, वो जैकेट्स बदन पर आयीं और ऊनी कैप्स सिरों पर।
गुफाओं में बर्फ की बहुत ही सुंदर मूर्तियां थीं। इसका छोटा रूप हम बर्लिन के आइसबार में देख चुके थे। लगभग 1 घंटा हमने गुफाओं में बिताया। उसके बाद बड़ासा गलियारा पार करके खुली बर्फ़ में आ गये।
यहां आकर तो लगा पंख लग गये हैं। नर्म मुलायम बर्फ़ धूप में चांदी की तरह चमक रही थी। बर्फ़ की चादर में लिपटा हर पहाड़, जैसे प्रकृति ने अपना सपना ओढ़ रखा हो। ये सपने हमारी आंखों को रोशन कर रहे थे। ये वादियाँ, हर क़दम पर नयी कहानी कह रही थीं। बर्फ़ के टुकड़े, जैसे आसमान से फ़रिश्ते धरती को चूमने आये हों। हमने यहां ख़ूब फ़ोटो लिये। काफ़ी लोग थे इस जगह, सब अपनी मस्ती में इस सौंदर्य को अपने मोबाइल की मेमरी में क़ैद कर रहे थे।
थोड़ी दूरी पर Sphinx Observatory वैज्ञानिक अनुसंधान केंद्र और व्यू पॉइंट दिखायी दे रहा था। यहाँ से आल्प्स का विहंगम दृश्य दिखता है।
वापसी में ट्रेन का समय तय था, सो घूम फिरकर स्टेशन पर आ गये क्योंकि जितना समय आने में लगा उतना ही वापिस जाने में व्यतीत होने वाला था। हम समय से इंटरलेकन पहुंचना चाहते थे क्योंकि मौसम का मिज़ाज कभी भी बदल सकता है। कहते हैं कि बारिश में यहां बहुत फिसलन हो जाती है और रात्रि में रुकने की भी कोई सुरक्षित जगह नहीं।
वापसी में जब हम ट्रेन मे बैठे मुझे अपने पर्स में कुछ गीला महसूस हुआ। खोलकर देखा तो बॉटल का ढक्कन ठीक से बंद न होने की वजह से पानी लीक हो गया था। जो कुछ भीग चुका था, उसमें मेरा पासपोर्ट भी था। अब क्या करें यदि उस पर लगे स्टैंप मिट गये तो हमारी यात्रा अवैध करार कर दी जाएगी। बड़ी बेटी ने ढांढ़स बंधाते हुए एक एक पेपर को सुखाया। और कहा कि इन पर आयरन कर देंगे तो सब पहले जैसा हो जाएगा।
इंटरलेकन और फिर वापसी
जो उल्लास बर्फ़ के पहाड़ों ने भरा था, एक बॉटल ने उसे पानी-पानी कर दिया। शहर में आकर हमने खाना खाया और बस पकड़कर टेंपरेरी घर पहुंचे। दूसरे दिन हम आस-पास की झीलें और शहर इंटरलेकन में घूमे।
इंटरलेकन (Interlaken) स्विट्ज़रलैंड का एक बेहद ख़ूबसूरत पर्यटन शहर है, जो झीलों, पहाड़ों और रोमांचक गतिविधियों के लिए मशहूर है। इसका नाम ही बताता है कि यह “दो झीलों के बीच” बसा हुआ है। यह शहर Lake Thun और Lake Brienz के बीच स्थित है, और पीछे बर्नीज़ आल्प्स की ऊँची चोटियाँ नज़र आती हैं।
यहां की रोचक बात, इंटरलेकन दुनिया में पैराग्लाइडिंग की राजधानी मानी जाती है— यहाँ दिनभर आसमान में रंग-बिरंगे पैराशूट उड़ते नजर आते हैं। अगले दिन फ्रैंकफ़र्ट के लिए हमारी ट्रेन थी। फ्रैंकफ़र्ट आये तो देश में युद्ध का माहौल बन गया था। आगे कहीं जाने का मन नहीं हुआ।
4-5 दिन बेटियों के साथ रहे और 9 मई को भारत आ गये। बच्चे परदेशी हो गये, उन्हें छोड़कर आना भी दुख ही दे रहा था। एयरपोर्ट पर बेटी ने आंसुओं भरी आंखों से मुस्करा कर विदा किया। दस घंटे की हवाई यात्रा करके दिल्ली आये। वहां से कोटा आने के लिए मन बहुत बेताब हो गया। बस जल्दी ही घर आ जाये।
स्टेशन पर बेटा, बहू और पोता हमें लेने आये थे। उन्हें देखकर लगा जैसे बरसों इनसे दूर रहे हों। घर आख़िर घर होता है। परदेश में घूम सकते हैं, रह नहीं सकते। चिड़िया के बच्चों की कहानी याद आयी:
पूरब से पश्चिम को आये
उत्तर से दक्षिण को जाये
घूम-घाम कर घर को आये
आकर मां को संदेश सुनाये
देख लिया हमने जग सारा
सबसे सुंदर नीड़ हमारा
समाप्त

प्रवेश सोनी
कविता और चित्रकला, यानी दो भाषाओं, दो लिपियों को साधने वाली प्रवेश के कलाकार की ख़ूबी यह है कि वह एक ही दौर में शिक्षक भी हैं और विद्यार्थी भी। 'बहुत बोलती हैं औरतें' उनका प्रकाशित कविता संग्रह है और समवेत व एकल अनेक चित्र प्रदर्शनियां उनके नाम दर्ज हैं। शताधिक साहित्य पुस्तकों के कवर चित्रों, अनेक कविता पोस्टरों और रेखांकनों के लिए चर्चित हैं। आब-ओ-हवा के प्रारंभिक स्तंभकारों में शुमार रही हैं।
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