
- November 14, 2025
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पाक्षिक ब्लॉग रति सक्सेना की कलम से....
यातनाघर से कविता: अर्जेन्टीना कन्सन्ट्रेशन कैम्प
पिछले अंक में मैंने डाकाउ यातनाघर में उपजी कविता की चर्चा की थी। चलिए मैं इसी कविता के पार्श्व में जो घटना है, उससे अवगत करवाती हूँ। कृत्या 2010 में हमने जो कवितोत्सव किया था, उसका विषय ‘विस्थापन और कविता’ था। उसमें अमेरिका की एक स्पेनिश कवि आयी थीं, जिनके बारे में मुझे बताया गया था कि वे अर्जेन्टीना में कन्सन्ट्रेशन कैम्प में रखी गयी थीं। बाद में अमेरिकन सरकार ने उन्हें छुड़वाया था। आज हम उन्हीं एलिसिया माबेल पार्टनोय की बात कर रहे हैं।
मैंने एलिसिया से इन्टर्व्यू लिया था, जिससे उनकी कहानी जान पायी। उनका जन्म 1955 में अर्जेंटीना में हुआ था। अर्जेंटीना के राष्ट्रपति जुआन पेरोन की मृत्यु के बाद 1976 में एक सैन्य तख्तापलट हुआ और पेरोनिस्ट पार्टी के वामपंथी छात्रों ने सामाजिक अन्याय के ख़िलाफ़ अपनी आवाज़ उठायी थी। तख्तापलट से एक साल पहले, सैनिकों ने लोगों को उठाना शुरू कर दिया, उन्हें गुप्त हिरासत में ले जाया जाता था। कभी मार दिया जाता तो कभी प्रताड़ित किया जाता, उनके शव भी उनके परिवारों को वापस नहीं किये जाते। एलिसिया पेरोनिस्ट यूथ मूवमेंट की एक कार्यकर्ता थीं। उन्हें बताया कि वे केवल उस देश के राजनीतिक परिदृश्य का हिस्सा बनने की कोशिश कर रही थीं। 12 जनवरी 1977 को उन्हें उनके घर से पकड़ लिया गया और एक 18 महीने की बेटी को पीछे छोड़कर एक यातना शिविर में जाने को मजबूर किया गया।
एलिसिया को पहले लिटिल स्कूल नाम से बनाये गये यातना शिविर में रखा गया। बाद में उन्हें जेलों में स्थान्तरित कर दिया जाने लगा। मैंने तब तक यातना शिविर नहीं देखे थे, इसलिए मन में चित्र तो नहीं बना पायी, लेकिन उन्होंने ही वर्णन किया कि हमें लगभग अर्धनग्न अवस्था में रहना था। पहरेदार उनका शोषण भी करते, उन्हें गालियां देते। एलिसिया ने बताया कि उनकी मित्र उनके साथ थीं, वे दोनों आपस में बातें करते थे, कभी कभी नर्सरी राइम्स गाने लगते। कभी कोई छन्द बनाने लगते। लेकिन उनकी मित्र को एक दिन ग़ायब कर दिया गया। यानी मार दिया गया। उन्हें दूसरी जेल में भेजा गया, तब उन्होंने अपनी बेटी के लिए कविता लिखी, जिसे राजनैतिक चिट्ठी करार देकर भेजने नहीं दिया गया। 1978 में अर्जेंटीना की विला देवोटो जेल में, उन्होंने अपनी तीन साल की बेटी को संबोधित एक यह कविता लिखी:
“बेटी, तुम्हारी माँ जेल में नहीं रह सकती
क्यूंकि उसके ख़ून में ही उड़ान है
बेड़ियां, सलाख़ें और ताले उसे रोक नहीं सकते
न वह जेल में है, न ही तुम्हें छोड़ा है
उसकी उदासी कबूतर है,
जो अपनी पीड़ा को गुटक लेती है
वह इधर उधर मंडराती गोरैया है
बेटी, तुम्हारी माँ के तुम्हारे ख़ून में पंछियों की उड़ान है

एलिसिया ने इसके साथ कुछ और कविताएं भी जेल में लिखीं। वे उन चन्द भाग्यवानों में से थीं, जिन्हें अमरीकी सरकार ने रिहा करवाकर शरण दी। उन्हें नौकरी भी मिली। अमेरिका में ही वे अपनी बेटी से मिलीं। वे कुछ वक़्त तो मौन रहीं, क्योंकि पुरानी पीड़ा से उबरना आसान नहीं था। लेकिन बाद में उन्होंने सभी घटनाओं को याद करके कविताएं लिखनी आरंभ कर दीं, इनसे न वे स्वयं पीड़ा से उबर पायीं, अपितु, वे उन लोगों के परिवारों को भी सांत्वना दे पायीं, जिनके अपने लोग कन्सन्ट्रेशन कैम्प में मार दिये गये थे।
हो सकता है अनेक क़ैदियों ने कविता का सहारा लिया होगा, कम से कम उस दुख से उबरने के लिए। लेकिन वे सब एलिसिया जैसे भाग्यवान न रहे। इस घटना का मक़सद यही है कि पीड़ा की तीव्रता के वक़्त भी कविता मानसिक शान्ति तो देती है, संभवतया लड़ने की शक्ति भी।

रति सक्सेना
लेखक, कवि, अनुवादक, संपादक और वैदिक स्कॉलर के रूप में रति सक्सेना ख्याति अर्जित कर चुकी हैं। व्याख्याता और प्राध्यापक रह चुकीं रति सक्सेना कृत कविताओं, आलोचना/शोध, यात्रा वृत्तांत, अनुवाद, संस्मरण आदि पर आधारित दर्जनों पुस्तकें और शोध पत्र प्रकाशित हैं। अनेक देशों की अनेक यात्राएं, अंतरराष्ट्रीय कविता आंदोलनों में शिरकत और कई महत्वपूर्ण पुरस्कार/सम्मान आपके नाम हैं।
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