जगदीश पंकज

गीत अब

जगदीश पंकज

ख़बरें, बरस रहीं धरती पर
आसमान बोझिल-बोझिल है
जाने-पहचाने चेहरों पर
कुछ भी कह पाना मुश्किल है

कानाफूसी में उलझी हैं
इतनी आदमक़द अफ़वाहें
चलती-फिरती दीख रही हैं
दीवारों की कुटिल निगाहें
सच को कितना कहाँ खंगालें
सब प्रायोजित है, झिलमिल है

विज्ञापन तो विज्ञापन हैं
शीर्ष-कथा की तरह परोसा
शंका उभरे नहीं कहीं से
उठ न जाये कहीं भरोसा
पर जो दिखलाया निखारकर
वह भी दीख रहा पंकिल है

इतना घटाटोप छाया है
लगता सब कुछ धुंध भरा है

महाबौद्धिक शोध कर रहे
कहाँ-कहाँ, क्या-क्या बिखरा है
फिर भी दीख रहा साज़िश में
कौन, कहाँ, कितना शामिल है

कितना जनमत को भरमाना
यह ख़बरों पर आधारित है
क्या कुछ ब्रेकिंग-न्यूज़ बनाएं
निर्देशों पर अवलंबित है
समाचार तो सिर्फ़ माध्यम
सिंहासन असली मंज़िल है

जगदीश पंकज

जगदीश पंकज

जगदीश प्रसाद जैन्ड उर्फ़ जगदीश पंकज 1952 में जन्मे समकालीन प्रमुख हिंदी नवगीतकारों में शामिल हैं। आपके दर्जन भर नवगीत संग्रह व अन्य कृतियां प्रकाशित हैं। नवगीत के अनेक प्रमुख समवेत संकलनों में आप शामिल रहे हैं। साहित्यिक पत्रिका 'संवदिया' के नवगीत-विशेषांक का सम्पादन कर चुके हैं और अनेक संस्थाओं द्वारा नवाज़े जा चुके हैं।

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