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व्यंग्य मुकेश असीमित की कलम से....

पर्दा है पर्दा

              राजा विशेष आरामगाह में आराम फ़रमा रहा था। विशेष इसलिए कि वह पहली बार इस आरामगाह में आया था। राजा को एक ही दुःख कचोटे जा रहा था- आज वह अकेला था। बार-बार उसे दरबारियों के साथ की गयीं गुप्त महफ़िलें याद आ रही थीं। राजा के दरबारी, जो उसके हर बुरे काम में साथ देते थे, आज पास में नहीं थे। कुछ तो बाहर ही छूट गये थे। राजा को मालूम था कि इस नये आरामगाह में एक दिन उसे भी आना होगा, इसलिए उसने पहले ही कुछ दरबारियों को वहाँ भिजवा दिया था। यह सोचकर कि जब वह यहाँ आएगा, तो कंपनी देने के लिए दरबारी मौजूद रहेंगे।

राजा की यह भी माँग थी कि उसके हर बुरे काम में साथ देने वालों को अलग कक्ष में क्यों रखा जाये? उन्हें तो उसके शयन कक्ष में ही रखा जाना चाहिए। लेकिन किसी ने राजा की बात नहीं मानी। राजा चिल्लाता रहा, “तुम मेरे साथ ऐसा अन्याय नहीं कर सकते। यह मेरे राज्य की जनता के साथ धोखा है। धोखा देना तो मेरा काम है, तुम मुझे कैसे धोखा दे सकते हो?”

राजा ने धमकी भी दी और घुड़की भी, लेकिन किसी ने उसकी बात नहीं सुनी। वह बिस्तर पर करवटें बदल रहा था। रह-रहकर उसे अपने नगर की याद आ रही थी। उसने राज्य के लिए कितना कुछ किया था.. गली-सड़क हर जगह पानी-पानी कर दिया था। राजा ने अपनी नगरी को झीलों की नगरी बना दिया था। बेरोज़गारी का नामो-निशान मिटा दिया।कहने का मतलब बेरोज़गारी का कोई नाम लेने वाला नहीं बचा, युवाओं को मुफ़्त डाटा और मोबाइल देकर उन्हें दिन-रात बिस्तर पर पड़े-पड़े पबजी खेलने और रील बनाने का काम सौंप दिया। पूरे राज्य में शराब की नदियाँ बहा दीं। राजा ख़ुद तो सत्ता के नशे में डूबा रहता था, लेकिन जनता को असली नशे का मज़ा दिलाया।

राजा को बार-बार अपना आलीशान महल याद आ रहा था। कितने नाज़ों से उसने वह महल बनवाया था। जनता को दिखाया था कि एक आम आदमी क्या नहीं कर सकता। आम आदमी सिर्फ़ टोपी पहनने के लिए नहीं, बल्कि टोपी पहनाने के लिए भी होता है। लेकिन जनता राजा के इशारों को समझती ही नहीं थी। महल बनवाने में उसने कितने मज़दूरों को काम दिया, ठेकेदारों को टेंडर दिलवाये, फ़र्ज़ी बिल बनवाये और अपने गुंडों, पार्टी कार्यकर्ताओं, दरबारियों और चाटुकारों पर उपकार किया।

राजा ख़ुद इतना ईमानदार था कि घोटालों की फ़ाइलों पर दस्तख़त तक नहीं करता था। उसने सभी घोटालों का श्रेय अपने दरबारियों को दिया और राजनीति के प्रथम सोपान पर सबको हाथ पकड़कर चढ़ाया। राजा जानता था कि महल एक दिन छोड़ना पड़ेगा। यह सब माया है। लेकिन जिन्होंने बुरे कामों में भी उसका साथ दिया, उनके बिना वह नये आरामगाह में कैसे रह सकता था? इसलिए उसने पहले उन्हें वहाँ पहुँचा दिया। अब वह यही सोच रहा था कि जो छूट गये, उन्हें कैसे लाया जाये।

इसी गहन चिंतन में राजा की नींद लग गयी। तभी उसके आलीशान महल का रिमोट वाला पर्दा हाथ जोड़े उसके सामने खड़ा था। वैसे तो जब भी राजा सोता, उसकी आत्मा महल में चली जाती। वहाँ अपने परिजनों और बचे हुए दरबारियों से साथ निभाने की गुहार लगाती। लेकिन आज पर्दा ख़ुद ही राजा के पास चला आया।

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पर्दा बड़े कातर स्वर में बोला, “राजा, मुझे वहाँ क्यों छोड़ आये? देखो, मैंने तुम्हारा कितना साथ दिया। तुम्हारी हर करतूत पर पर्दा डाला। दरबारियों के साथ तुम्हारी गुप्त मीटिंगों में ढाल बनकर खड़ा रहा। तुम्हारे रिमोट के इशारे पर खुलता और बंद होता था। जब विरोधी तुम्हें बेपर्दा करने पर तुले थे, मैं ही था जो तुम्हारी इज़्ज़त बचा रहा था। अब मैं वहाँ निरीह और असहाय पड़ा हूँ। कोई मुझे बंद करने या खोलने की हिम्मत भी नहीं करता। क्यों न मुझे यहीं बुला लो? इस शयन कक्ष में फिट करवा लो। तभी तुम ईडी और सीबीआई वालों से सांठ-गांठ कर पाओगे। चुनाव अभी दूर है। घोटाले की रक़म इधर-उधर करके अपने महल लौट जाओ और नये कांड की प्लानिंग करो। तुम्हारे बचे हुए दरबारी ख़ुद राजा बनने की फ़िराक में हैं। इससे पहले कि वे कुर्सी हथिया लें, यहाँ से निकलो। कहीं ऐसा न हो कि वीर सावरकर बनने के चक्कर में तुम दो-चार इन्क़िलाब की पुस्तकें लिखने लगो। मुझे तुम्हारी ये दुर्दशा देखी नहीं जाती। मैं तो तुम्हारे मगरमच्छी आँसू पोंछने के लिए भी हमेशा तैयार रहता हूँ।”

राजा को पर्दे की बात सही लगी। वह एक बार फिर अपनी कल्याणकारी योजनाओं से सात पुश्तों की सेवा करने के नये प्लान में जुट गया।

डॉ. मुकेश असीमित, dr mukesh aseemit

डॉ. मुकेश असीमित

हास्य-व्यंग्य, लेख, संस्मरण, कविता आदि विधाओं में लेखन। हिंदी और अंग्रेज़ी में लिखे व्यंग्यों के संग्रह प्रकाशित। कुछ साझा संकलनों में रचनाएं शामिल। देश-विदेश के प्रतिष्ठित दैनिक, साप्ताहिक, मासिक, पाक्षिक, त्रैमासिक पत्र-पत्रिकाओं एवं साहित्यिक मंचों पर नियमित प्रकाशन।

2 comments on “पर्दा है पर्दा

  1. पर्दे की आड़ में छद्म कामों छद्म वेश धारियों पर सटीक व्यंग्य
    बधाई डॉ मुकेश जी

  2. बहुत खूब लिखा आपने, मुकेश. पूरा पढ़ते रहने की रुचि बनी रही.

    अंत में ईडी और सीबीआई लिखकर शायद इसका स्कोप सिर्फ इसी सरकार तक सीमित हो गया या कटाक्ष सीधा-सीधा हो गया.

    आने वाले लेखों का इंतज़ार रहेगा.
    आकांक्षा

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