संयुक्तांक 23-24

आब-ओ-हवा – संयुक्तांक 23-24 भाषाओं के साथ ही साहित्य, कला और परिवेश के बीच पुल बनाने की इस कड़ी में विशेष नज़र है अभिव्यक्ति की आज़ादी से जुड़ी कुछ...

गीत अब

गीत अब रंजना गुप्ता द्वन्द कोलाहल जटिल संवेदनाहै कदाचित यह समयनिर्मम समय गिद्ध जैसी दृष्टि से दिन रात सब कुछ लीलतावंचनाओं की वही गोठिल दुधारी छीलतासब निरर्थक वाद हैं...

गीत तब

गीत तब देवेंद्र शर्मा ‘इंद्र’ हम जीवन के महाकाव्य हैंकेवल छन्द प्रसंग नहीं हैं कंकड़-पत्थर की धरती हैअपने तो पाँवों के नीचेहम कब कहते बन्धु! बिछाओस्वागत में मखमली गलीचेरेती...

ग़ज़ल अब

ग़ज़ल अब अशोक मिज़ाज बद्र पतंग उड़ा के मैं पीछे तो हट नहीं सकतातुम्हारी सद्दी से माझा तो कट नहीं सकताअब एक मुश्त चुकाना पड़ेगा दुश्मन कोये क़र्ज़ वो...

ग़ज़ल तब

ग़ज़ल तब उदय प्रताप सिंह पुरानी कश्ती को पार ले कर फ़क़त हमारा हुनर गया हैनये खिवैये कहीं न समझें नदी का पानी उतर गया हैतुम होशमंदी के उंचे...