November 30, 2025 आब-ओ-हवा हम बोलेंगे लोकतंत्र, सत्तानमाज़ी नागरिक और बंधु-गीतों की याद पाक्षिक ब्लॉग भवेश दिलशाद की कलम से…. लोकतंत्र, सत्तानमाज़ी नागरिक और बंधु-गीतों की याद “एक आज के आगे-पीछे लगे हुए हैं दो-दो कल”… क्या... और पढ़े
November 14, 2025 आब-ओ-हवा हम बोलेंगे न ज़िम्मेदार है प्रेस न आज़ाद, फिर भी दिवस? पाक्षिक ब्लॉग भवेश दिलशाद की कलम से…. न ज़िम्मेदार है प्रेस न आज़ाद, फिर भी दिवस? ‘पत्रकारिता में जन-विश्वास को मज़बूत करना’ इस... और पढ़े
October 30, 2025 आब-ओ-हवा हम बोलेंगे 150 करोड़ दीये जलाने का रिकॉर्ड बन पाएगा? पाक्षिक ब्लॉग भवेश दिलशाद की कलम से…. 150 करोड़ दीये जलाने का रिकॉर्ड बन पाएगा? शहर के अंधेरे को इक चराग़ काफ़ी है ... और पढ़े
October 15, 2025 आब-ओ-हवा हम बोलेंगे नोबेल पुरस्कार: शांति की खोज या ईजाद? नियमित ब्लॉग भवेश दिलशाद की कलम से…. नोबेल पुरस्कार: शांति की खोज या ईजाद? विज्ञान के नोबेल से नोबेल पुरस्कार समिति को ही... और पढ़े
September 30, 2025 आब-ओ-हवा हम बोलेंगे इतने साहित्य उत्सव..! तमाशा मेरे आगे नियमित ब्लॉग भवेश दिलशाद की कलम से…. इतने साहित्य उत्सव..! तमाशा मेरे आगे साहित्य उत्सव क्या बला हैं? कुछ बरस पहले की... और पढ़े
September 14, 2025 आब-ओ-हवा हम बोलेंगे हिंदी, भाषा, आवाज़ और अपने सवाल पाक्षिक ब्लॉग भवेश दिलशाद की कलम से…. हिंदी, भाषा, आवाज़ और अपने सवाल अरुंधति रॉय ने अपनी नयी किताब ‘मदर मैरी कम्स... और पढ़े
August 30, 2025 आब-ओ-हवा हम बोलेंगे कमलकांत जी, अनघ जी.. प्यास और अंधेरे से भिड़ंत संदर्भ: आती हुई तिथियों पर कमलकांत सक्सेना (05.10.1948-31.08.2012) और महेश अनघ (14.09.1947-04.12.2012) को याद करने के अवसर विशेष.. पाक्षिक ब्लॉग भवेश दिलशाद की कलम से…. कमलकांत जी, अनघ जी..... और पढ़े
August 14, 2025 भवेश दिलशाद हम बोलेंगे आज़ादी के मायने बचाने का वक़्त भवेश दिलशाद की कलम से…. आज़ादी के मायने बचाने का वक़्त 15 अगस्त आता है तो बंटवारे की त्रासदी उभरने लगती ही है।... और पढ़े
July 30, 2025 भवेश दिलशाद हम बोलेंगे तुम हमसे दो हाथ आगे निकले… क़तरा-क़तरा फ़हमीदा रियाज़ भवेश दिलशाद की कलम से…. तुम हमसे दो हाथ आगे निकले… क़तरा-क़तरा फ़हमीदा रियाज़ फ़हमीदा रियाज़ की याद आती है, तो ‘क़तरा-क़तरा’ उठा... और पढ़े
July 15, 2025 भवेश दिलशाद हम बोलेंगे पुल बनाने का वक़्त पुल बनाने का वक़्त सैकड़ों पुल बने फ़ासले भी मिटे आदमी आदमी से जुदा ही रहा – रौनक़... और पढ़े